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धर्मगुरु से कहना कि वे मेरी निंदा करते हैं इसलिए मैं उनको परिवार सहित जलाकर राख कर दूंगा।' ... आनंद बहुत डरे। उन्होंने जाकर महावीर से सारी बातें कहीं और पूछा – 'हे भगवन्! गोशालक क्या ऐसा करने की शक्ति रखता है?'
महावीर स्वामी बोले – 'हे आनंद! गोशालक ने तप करके तेजोलेश्या प्राप्त की है। इसलिए वह ऐसा कर सकता है। तीर्थंकर को वह नहीं जला सकता। हां तकलीफ उनको भी पहंचा सकता है।'
थोड़ी ही देर में आजीविक संघ के साथ गोशालक वहां आ गया। और क्रोध के साथ बोला – 'हे आयुष्यमान काश्यप! तुम मुझे मंखलीपुत्र गोशालक और अपना शिष्य बताते हो यह ठीक नहीं है। मंखलीपुत्र गोशालक तो मरकर स्वर्ग में गया है। उसका शरीर परिसह सहन करने के योग्य था, इसलिए मैंने उसके शरीर में प्रवेश किया है। एक सौ तेतीस बरसों में मैंने सात शरीर बदले हैं। यह मेरा सातवां शरीर है।'
महावीर बोले – 'हे गोशालक! चार जैसे कोई आश्रयस्थान न मिलने से कुछ ऊन, सन या रूई के तुंतुओं से शरीर को ढककर अपने को छिपा हुआ मानता है, इसी तरह हे गोशालक! तुम भी खुद को बहानों के अंदर छिपा हुआ मानते हो; मगर असल में तुम गोशालक ही हो।'
गोशालक अधिक नाराज हुआ। उसे अनेक तरह से महावीर का तिरस्कार किया और कहा – 'हे काश्यप! मैं आज तुझे नष्ट भ्रष्ट कर दूंगा।'
गुरु की निंदा देख प्रभु के शिष्य सर्वानुभूति मुनि और सुनक्षत्र मुनि ने उसे गुरु का अपमान नहीं करने की सलाह दी; परंतु उसने क्रोध करके उन दोनों को जला दिया। फिर उसने महावीर पर सोलह देशों को भस्म करने की ताकात रखनेवाली तेजोलेश्या रखी; परंतु वह प्रभु पर कुछ असर न कर सकी। उनका शरीर कुछ गरम हो गया। फिर तेजोलेश्या लौटकर गोशालक के शरीर में प्रवेश कर गयी। तब गोशालक बोला – 'हे काश्यप! अभी तूं बच गया है पर मेरे तप से जन्मी हुई तेजोलेश्या तुझे पित्तज्वर से
: श्री महावीर चरित्र : 272 :