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सात दिन के बाद जब गोशालक कालधर्म पाया तब गौतम स्वामी
पूछा – 'भगवन्, गोशालक मरकर किस गति में गया?' महावीर स्वामी ने उत्तर दिया – 'गोशालक ने अंतिम समय में अपने पाप का पश्चात्ताप किया जिससे उसे सम्यग्दर्शन हुआ और उस समय आयुष्य का बंध होने से मरकर अच्युत देवलोक में गया है। और अनेक भवभ्रमण करने के बाद वह मोक्ष में जायगा।'
सिंह अनगार की शंका :
श्रावस्ती से विहार कर प्रभु मेंढिक ग्राम में आये और साणकोष्ठक
गया।
पुत्राल जब हालाहला के यहां पहुंचा तब उसने गोशालक को नाचते, कूदते, गाते, रोते देखा। पुत्राल को गोशालक की ये क्रियाएँ अच्छी न लगीं। वह लौट गोशालक के शिष्य पानी लेकर आ रहे थे। उन्होंने पुत्राल को जल्दी-जल्दी घर की तरफ जाते देखा निमित्तज्ञान से उसके मन की बात जानकर वे बोले- महानुभाव! तुमको तृण गोपालिका का संस्थान, जानने की इच्छा है। आओ सर्वज्ञ गुरु से पूछ लो । गुरु का निर्वाण समय नजदीक है। इसलिए वे नृत्य, गान इत्यादि कर रहे हैं। पुंत्राल बोला महाराज! मैं घर
जाकर आता हूं।'
गोशालक के शिष्यों ने पुत्राल के आने के पहले ही गोशालक को ठीक तरह से बिठा दिया और पुत्राल का प्रश्न बता दिया। पुत्राल आया। गोशालक को नमस्कार करके बैठा । गोशालक बोला – 'तुम्हें तृण गोपालिका का संस्थान जानने की इच्छा है। वह संस्थान (आकृति) बांसं की जड़ के जैसा होता है। पुत्राल संतुष्ट होकर अपने घर गया।
गोशालक ने एक दिन अपना देहावसान निकट जान अपने शिष्यों को बुलाया और कहा 'देखो, मैं सर्वज्ञ नहीं हूं सर्वज्ञता का मैंने ढोंग किया था। मैं सचमुच ही महावीर स्वामी का शिष्य गोशालक हूं। मैंने घोर पाप किया है। अपने गुरु पर तेजोलेश्या रखकर उन्हें बहुत कष्ट पहुंचाया है। और अपने दो गुरु भाइयों को जिन्होंने मुझे गुरुद्रोह नहीं करने की सलाह दी थी-मारकर मैं हत्यारा बना हूं। इसलिए मरने के बाद मेरे पैरों में रस्सी बांधना, मुझे सारे शहर में घसीटना और मेरे पापों का शहर के लोगों को ज्ञान करना । ' महावीर स्वामी पर तेजो लेश्या रखी उसके ठीक सातवें दिन गोशालक मरा और उसके शिष्यों ने अपनी गुरु की आज्ञा का पालन करने के लिए, हालाहला के घर ही में, उसको पैर से डोरी बांधकर घसीटा।
: श्री महावीर चरित्र : 274 :