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हुआ। तुरंत उन्हें खयाल आया कि, मैं तो मुनि हूं। मुझे राज और कुटुंब से क्या मतलब? धिक्कार है मेरी ऐसी इच्छा को! मैं त्याग करके भी पूरा त्यागी न हो सका! भगवन्! मैं किस बिंटबना में पड़ा?' इस तरह अपनी भूल की आलोचना करने लगे। उसी समय तुमने दूसरी बार पूछा था कि, वे कौनसी गति में जायेंगे और मैंने जवाब दिया था कि सर्वार्थसिद्ध विमान में जायेंगे। कारण, उस समय उनके भाव अति निर्मल थे।'
इस तरह अभी भगवान का कथन चल ही रहा था कि आकाश में दुंदुभिनाद सुनायी दिया। श्रेणिक ने पूछा – 'प्रभो! यह दुंदुभिनाद कैसा है?'
प्रभु बोले – 'राजन! प्रसन्नचंद्र मुनि को केवलज्ञान उत्पन्न हआ है। उनका ध्यान निर्मलतम हुआ। वे शुक्ल ध्यान पर आरुढ़ हुए। उनके मोहिनी कर्म का और उसके साथ ही ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी और अंतराय कर्म का भी क्षय हो गया। इनके क्षय होते ही उनको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है।'.
शुभ या अशुभ ध्यान ही प्राणियों को सुख में या दुःख में डालते हैं। अंतिम केवली :
राजा श्रेणिक ने पूछा – 'भगवन्! अंतिम केवली कौन होगा? उस समय विद्युन्माली नामक ब्रह्मलोक के इंद्र का सामानिक देवता अपनी चार देवियों के साथ प्रभु को वंदना करने आया हुआ था। उसे बताकर प्रभु ने कहा-'इस भरतक्षेत्र में इस अवसर्पिणी काल में यह पुरुष अंतिम केवली होगा।'
श्रेणिक ने पूछा – 'क्या देवताओं को भी केवलज्ञान होता है?'
प्रभु ने उत्तर दिया – 'नहीं यह देव सात दिन के बाद च्यवकर राजगृही के श्रेष्ठी ऋषभदत्त का पुत्र होगा। वैराग्य पाकर सुधर्मा का शिष्य होगा। जंबू नाम रखा जायगा। उसे केवलज्ञान होगा। उसके बाद कोई भी केवली नहीं होगा।'
श्रेणिक ने पूछा – 'देवताओं का जब अंतकाल नजदीक आता है तब उनका तेज घट जाता है। इनका तेज क्यों कम नहीं हुआ?'
: श्री महावीर चरित्र : 278 :