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श्वान के जैसे सारहीन मालूम होंगे। सुविहित मुनियों की विहारभूमि में ऐसे लिंगधारी शूलके जैसा त्रास देंगे। क्षीरवृक्ष के समान श्रावकों
को अच्छे मुनियों की संगति नहीं करने देंगे। ४. काकपक्षी - इस स्वप्न का यह फल है कि, जैसे काकपक्षी विहार
वापिका में नहीं जाते वैसे ही उद्धत स्वभाव के मुनि धर्मार्थी होते हुए भी अपने गच्छों में नहीं रहेंगे। वे दूसरे गच्छों के सूरियों के साथ, जो कि मिथ्याभाव दिखानेवाले होंगे, मूर्खाशय से चलेंगे। हितैषी अगर उनको उपदेश करेंगे कि इनके साथ रहना अनुचित है तो वे हितैषियों का सामना करेंगे। ५. सिंह - इस स्वप्न का यह फल है कि, जैन शासन जो सिंह के
समान है - जातिस्मरणादि ज्ञानरहित और उसको धर्म के रहस्य को - समझनेवालों से शून्य होकर इस भरतक्षेत्र रूपी वन में विचरण करेगा-रहेगा। उसे अन्य तीर्थी तो किसी तरह की बाधा न पहुंचा सकेंगे; परंतु स्वलिंगी ही-जो सिंह के शरीर में पैदा होनेवाले कीड़ों की तरह होंगे - इसको कष्ट देंगे, जैनशासन की निंदा
करायेंगे। ६. कमल - इस स्वप्न का यह फल है कि, - जैसे स्वच्छ सरोवर में
होनेवाले कमल सभी सुगंधवाले होते हैं, वैसे ही उत्तम कुल में पैदा होनेवाले भी सभी धर्मात्मा होते हैं; परंतु भविष्य में ऐसा न होगा। वे धर्मपरायण होकर भी कुसंगति से भ्रष्ट होंगे। मगर जैसे गंदे पानी के गड्डे में भी कभी-कभी कमल उग आते हैं वैसे ही कुकुल और कुदेश में जन्मे हुए भी कोई मनुष्य धर्मात्मा होंगे; परंतु वे हीन जाति
के होने से अनुपादेय होंगे। ७. बीज - इसका यह फल होगा कि क्षमादि गुणरूपी कमलों से
अंकित और सुचरित्ररूपी जल से पूरित एकांत में रखे हुए कुंभ के समान महर्षि विरले ही होंगे। मगर मलिन कलश के समान शिथिलाचारी लिंगी (साधु) जहां-तहां दिखायी देंगे। वे ईर्ष्यावश महर्षियों से
: श्री महावीर चरित्र : 286 :