Book Title: Tirthankar Charitra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 306
________________ सिंधु दोनों नदियों के तीर पर वैताढ्य के दोनों तरफ नौ नौ बिल हैं कुल बहत्तर बिल हैं, उनमें रहेंगे। तिर्यंच जाति मात्र बीज रूप से रहेगी। उस विषम काल में मनुष्य और पशु सभी मांसाहारी, क्रूर और अविवेकी होंगे। गंगा और सिंधु नदी के प्रवाह में बहुत मछलियाँ और कछुए होंगे। उनका पाट बहुत छोटा हो जायगा। लोग मछलियां पकड़कर धूप में रखेंगे। धूप की गरमी से वे पक जायेंगी। उन्हीं को लोग खायेंगे। इस तरह उनका जीवननिर्वाह होगा। कारण उस समय अन्न, फल, दूध, दही वगैरा कोई भी खाने की चीज नहीं मिलेगी। शैया, आसन वगैरा सोने बैठने के पदार्थ भी न रहेंगे। भरत और ऐरावत नाम के दसों क्षेत्रों में इसी तरह पांचवां और छट्ठा आरा इक्कीस, इक्कीस हजर बरस तक रहेंगे। अवसर्पिणी में जैसे अत्यंत (छट्ठा) और उपांत्य (पांचवां) आरा होते हैं, वैसे ही उत्सर्पिणी में अंत्य (पहला) और उपांत्य (दूसरा) आरा होते हैं। उत्सर्पिणी काल के आरे : 'उत्सर्पिणी में दुःखमा दुःखमा नाम का (अवसर्पिणी काल के छठे आरे जैसा) पहला आरा होगा। इस आरे के अंत में पांच जाति के मेघ बरसेंगे। प्रत्येक जाति का मेघ सात सात दिन तक बरसेगा। पहला पुष्कर मेघ बरसकर पृथ्वी को तृप्त करेगा। दूसरा क्षीर मेघ बरसकर अनाज पैदा करेगा। तीसरा घृत मेघ स्नेह (चिकनापन) पैदा करेगा। चौथा अमृतं मेघ औषधियां उत्पन्न करेगा। पांचवां रस मेघ पृथ्वी वगैरा को रसमय बनायगा। ___'इस तरह पैंतीस दिन तक दुर्दिन नाशक वृष्टि होगी। बाद में वृक्ष, औषध, लता इत्यादि हरियाली देखकर बिल में रहनेवाले मनुष्य खुश होकर बाहर निकलेंगे। उसके बाद भारतभूमि फलवती होगी। मनुष्य मांस खाना छोड़ देंगे। फिर जैसे जैसे समय बीतता जायगा वैसे ही वैसे मनुष्यों के रूप में, शरीर के संगठन में, आयुष्य में और नदियों में जल बढ़ेगा। इससे मनुष्य और तिर्यंच सभी नीरोग हो जायेंगे। 'दुःखमा काल के (उत्सर्पिणी के दूसरे) आरे के अंत में इस भारतवर्ष में सात कुलकर होंगे। १. विमलवाहन, २. सुदाम, ३. संगम, ४. सुपार्थ, ५. दत्त, ६. सुमुख, ७. संमुची। : श्री तीर्थंकर चरित्र : 293 : .

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