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सुना। इसके मन में भी हमें वंदना करने की इच्छा हुई। वह बावड़ी से निकलकर हमें वंदना करने चला । रास्ते में आते तुम्हारे घोड़े के पैरों तले कुंचलकर मर गया। शुभ भावना के कारण मरकर वह दर्दुरांक नाम का देवता हुआ। अनुष्ठान के बिना भी प्राणी को उसकी भावना का फल मिलता है। उसने मेरे पैरों में गोशीर्ष चंदन लगाया था; परंतु तुम्हें वह कोढ़ - रस दिखायी दिया था।' श्रेणिक ने पूछा 'जब आपको छींक आयी तब वह अमांगलिक शब्द बोला और दूसरों को छींके आयी तब मांगलिक शब्द बोला, इसका क्या कारण है?'
महावीर स्वामी ने उत्तर दिया- 'मुझे उसने कहा कि, 'मरो' इससे उसका अभिप्राय था कि तुम अब तक इस दुनिया में कैसे हो? मोक्ष में जाओ। तुम्हें कहा कि 'जीते रहो' इससे उसका यह अभिप्राय था कि तुम. इस शरीर में रहोगे इसीमें सुख है; क्योंकि मरकर तुम नरक में जाओगे। अभयकुमार को कहा कि 'जीओ या मरो' इसका यह मतलब था कि अगर तुम जीते रहोगे तो धर्म करोगे और मरोगे तो अनुत्तर विमान में जाओगे। इससे जीवन, मरण दोनों समान है। कालसौकरिक को कहा था कि 'न जी न मर' इससे यह अभिप्राय था कि अगर जीएगा तो पाप करेगा और मरेगा तो सातवीं नरक में जायगा ।' उस समय अपनी 'नरक गति मिटाने हेतु पूछा और प्रभुने उपाय बताये। और उसे अपने जैसा तीर्थंकर होने का फल कहा! साल राजा को दीक्षा :
राजगृही से विहार कर प्रभु पृष्ठचंपा नामक नगरी में आये। वहां का राजा साल और युवराज महासाल- जो साल का छोटा भाई था और जिसे राजा ने युवराजपद दिया था - दोनों प्रभु को वंदना करने आये और उपदेश पा, वैराग्यवान हो प्रभु के शिष्य हो गये। उन्होंने अपना राज्य अपने भानजे 'गागली' को दिया। गागली के पिता का नाम पिठर' और माता का नाम 'यशोमती' था।
पृष्ठचंपा से विहार कर प्रभु चंपानगरी पधारे। वहां प्रभु के मुख्य शिष्य
: श्री महावीर चरित्र : 280 :