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१६. हर्ष और विषाद के कारण प्राप्त होते हुए भी विकार हीन होने से वे
गंभीर सागर थे। १७. हरेक के अंतःकरण को शांतिप्रदान करनेवाली भावनावाले होने से
वे सौम्य चंद्रमा थे। १८. द्रव्य से शरीर की कांति द्वारा और भाव से उज्ज्वल भावना द्वारा
देदीप्यमान होने से वे प्रखर सूर्य थे। १६. कर्ममल के नष्ट हो जाने से वे निर्मल स्वर्ण थे। २०. शीत उष्णादि सभी प्रतिकूल और अनुकूल परिसहों को सहन
करने से वे क्षमाशील पृथ्वी थे। २१. ज्ञान और तपरूपी ज्वाला से प्रदीप्त वे जाज्वल्यमान अग्नि थे।
महावीर स्वामी ने दीक्षा ली उसके बाद वे बारह वर्ष छः महीने और एक पक्ष तक यानी ४५१५ दिन छंद्मस्थ रहे। इतने समय में उन्होंने ३५१ तप किये, ४१६५ दिन निराहार रहे और ३५० दिन अन्न जल ग्रहण किया। . उनका ब्योरा हम नीचे देते हैं। सभी पारणे एकलठाणे से किये।
पारणों की संख्या
तपों के नाम . | संख्या . • सब मिलाकर
दिनों की संख्या पूर्ण छः मासी
१८० पांच दिन कम
१ . १७५ . छ: मासी चौमासी...
१०८० त्रिमासी
१८० ढाई मासी
१५० द्वि मासी
३६० डेढ मासी मासिक
३६० पाक्षिक
१०८०
52 m won |
६०
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 255 :