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कलुषता - मन में किसी तरह की मलिनता - न रखनेवाले होने से वे शरद् ऋतु के - जल की तरह निर्मल हृदयी थे।
सगे संबंधियों का या कर्म का मोहज़ल उन पर नहीं ठहर सकता था, इसलिए वे संसार-सरोवर में कमल के समान थे।
८. कछुआ जैसे अपने अंगों को छिपाकर रखता है, वैसे ही उन्होंने इंद्रियों को छुपाकर रखा था, इसलिए वे इंद्रियगोप्ता थे।
गेंडे के जैसे एक ही सींग होता है वैसे ही राग द्वेष हीन होने से गेंडे के सींग की तरह एकाकी थे।
परिग्रह रहित और अनियत निवास होने से वे पक्षी की तरह स्वतंत्र
थे।
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जैसे शंख रंग से नहीं रंगा जाता वैसे ही प्रभु भी किसी दुन्यवी रंग सेन रंगे गये। वे निरंजन रहे।
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वे सभी स्थानों में उचित रूप से अस्खलित विहार करते थे और संयम में अस्खलित वर्तते थे, इसलिए वे जीव की तरह अस्खलित गतिवाले थे।
वे देश, गांव, कुल आदि किसी के भी आधार की इच्छा नहीं रखते
थे, इसलिए वे आकाश की तरह आधारहीन निरालंबी थे।
किसी भी एक जगह पर नहीं रहने से वे वायु की तरह बंधन-हीन
थे।
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थोड़ासा भी प्रमाद नहीं करनेवाले भारंड पक्षी की तरह वे अप्रमादी
थे।
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कर्म रूपी शत्रुओं के लिए वे गजराज थे।
१३. स्वीकृत महाव्रत के भार को वहन करने के लिए वे वृषभ की तरह
पराक्रमी थे।
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परिसहादि पशुओं के लिए वे दुर्घर्ष सिंह थे।
अंगीकार किये हुए तप और संयम में दृढ़ रहने से और उपसर्ग रूपी झंझावात से भी चलित न होने से विनिश्चल सुमेरु थे।
: श्री महावीर चरित्र : 254: