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आरंभ किया था। यज्ञकर्म कराने के लिए इंद्रभूति, अग्निभूति आदि ११ विद्वान ब्राह्मण आये थे। जिस समय यज्ञ चल रहा था उसी समय देवता महावीर स्वामी के दर्शन करने आ रहे थे। देवताओं को देख इंद्रभूति ने ब्राह्मणों को कहा – 'अपने यज्ञ का प्रभाव तो देखो कि, मंत्रबल से खिचें हुए देवता अपने विमानों में बैठ बैठकर चले आ रहे हैं। '
मगर देवता तो यज्ञभूमि को छोड़कर आगे चले गये। तब बाहर से आये हुए एक मनुष्य ने कहा- 'शहर के बाहर एक सर्वज्ञ आये हुए हैं। देव उन्हीं को वंदना करने और उनका उपदेश सुनने जा रहे हैं। सर्वज्ञ का नाम सुनते ही इंद्रभूति क्रोध से जल उठा। वह बोला- 'कोई पाखंडी लोगों को ठगता होगा। मैं अभी जाकर उसकी सर्वज्ञता की पोल खोलता हूं।'
क्रोध से भरा हुआ। इंद्रभूति समवसरण में पहुंचा। मगर महावीर की सौम्य मूर्ति देखकर उसका क्रोध ठंडा हो गया। उसके हृदय ने पूछा 'क्या सचमुच ही ये सर्वज्ञ है?' उसी समय सुधासी वाणी में महावीर बोले'हे वसुभूतिसुत इंद्रभूति! आओ!' इंद्रभूति को आश्चर्य हुआ - ये मेरा नाम कैसे जानते हैं? उसके मन्नने कहा – तुझे कौन नहीं जानता है? तूं तो जगत्प्रसिद्ध है।
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'इतने ही में जलद गंभीर वाणी सुनायी दी - 'हे गौतम! तुम्हारे मन शंका है कि, जीव है या नहीं?' अपने हृदय की शंका बतानेवाले के सामने इंद्रभूति का मस्तक झुक गया। मगर जब महावीर ने शंका का समाधान कर दिया तब तो इंद्रभूति 1 एक दम महावीर के चरणों में जा गिरे और उन्होंने अपने ५०० शिष्यों के साथ दीक्षा ले ली।
1. इंद्रभूति के पिता का नाम वसुभूति और माता का नाम पृथ्वी था। उनका गौ 'गौतम' था और जन्म मगध देश के गोबर गांव में हुआ था। इनकी कुल आयु ९२ वर्ष की थी। ये ५० बरस गृहस्थ, ३० बरस छद्मस्थ साधु और १२ बरस केवली रहे थे। इंद्रभूति के दूसरे दो भाई और थे। उनके नाम अग्निभूति और वायुभूति थे। वे भी पीछे से महावीर के शिष्य हुए थे। अग्निभूति की आयु ७४ बरस की थी। वे ४६ बरस गृहस्थ १२ छद्मस्थ साधु और १६ बरस केवली. रहें थे । वायुभूति की आयु ७० बरस की थी। वे ४२ बरस तक गृहस्थ, १० बरस तक छद्मस्थ साधु और १८ बरस तक केवली थे।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 257 :