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७. मौर्यपुत्र। इनकी सातवीं वाचना। ८. अकंपित
अचलभ्राता। इन दोनों गणधरों की समान वाचना होने से
आठवीं वाचना। १०. मैतार्य - ११. प्रभास। इन दोनों की भी समान वाचना होने से नवीं वाचना।
फिर समय को जाननेवाला इंद्र उठा और सुगंधित रत्नचूर्ण (वासक्षेप) से पूर्ण पात्र लेकर प्रमु के पास खड़ा रहा। इंद्रभूति आदि गणधर भी मस्तक झुकाकर खड़े रहे। तब प्रभु ने यह कहकर कि 'द्रव्य, गुण और पर्याय से तुमको तीर्थ की अनुज्ञा है।' पहले इंद्रभूति के मस्तक पर वासंक्षेप डाला। फिर क्रमशः दूसरे गणधरों के मस्तकों पर डाला। बाद में देवों चे मी प्रसन्न होकर ग्यारहों गणधरों पर वासक्षेप और पुष्पों की वृष्टि की। ...
इसके पश्चात् प्रभु सुधर्मा स्वामी की तरफ संकेत कर बोले - 'ये दीर्घजीवी होकर चिरकाल तक धर्म का उद्योत करेंगे।' फिर सुधर्मास्वामी को सब मुनियों में मुख्य नियतकर गण की अनुज्ञा दी।
इसके बाद साध्वियों में संयम के उद्योग की व्यवस्था करने के लिए प्रभु ने प्रथम साध्वी श्री चंदनबाला को प्रवर्तिनी पद पर स्थापित किया। .
__इस तरह प्रथम पौरुषी (प्रहर) पूर्ण हुई। तब राजा ने जो बलि तैयार करायी थी उसे नौकर पूर्व द्वार से ले आया। वह आकाश में फैंकी गयी। आधी देवताओं ने ऊपर ही से ले ली। आधी भूमि पर पड़ी। उसमें से आधी राजा और शेष दूसरे लोग ले गये।
प्रभु वहां से उठे और देवच्छंद में जाकर बैठे। गौतमस्वामी ने उनके चरणों में बैठकर देशना दी।
उसके बाद कुछ दिन यही निवासकर प्रभु अपने शिष्यों सहित अन्यत्र विहार कर गये। राजा श्रेणिक को प्रतिबोध :
कुशाग्रपुर में राजा प्रसेनजित था। इसके अनेक पुत्र थे। उनमें से
: श्री महावीर चरित्र : 264 :