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ली। हजारों नरनारी जो दीक्षित न हुए उन्होंने पंच अणुव्रत धारण कर श्रावकव्रत अंगीकार किया।
इस तरह महावीर स्वामी का, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका का, चतुर्विध संघ स्थापित हुआ।
फिर प्रभु ने गौतमादि गणधरों को उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक त्रिपदी का उपदेश दिया और उससे गणधरों ने बारह' अंगों और चौदह पूर्वो की रचना की। इनमें से अकंपित और अचल भ्राता की वाचना एकसी, मेतार्य और प्रभास की वाचना एकसी हुई और दूसरे सात गणधरों की प्रत्येक की भिन्न भिन्न वाचनाएँ हुई। प्रभु ने त्रिपदी का एकसा उपदेश दिया; परंतु हरेक गणधर ने अपने ज्ञानविकास के अनुसार उसे समझा और तदनुसार सूत्रों की रचना की। इससे भिन्न भिन्न वाचनाओं के अनुसार महावीर स्वामी के नौ गण हुए। ग्यारह गणधरों के और उनकी वाचनाओं के नाम एक साथ यहां लिखे जाते हैं।
१. इंद्रभूति-प्रसिद्ध नाम गौतम स्वामी। इनकी एक वाचना। २:: अग्नि भूति। इनकी दूसरी वाचना। ३. वायु भूति। इनकी तीसरी वाचना। ४. . व्यक्त। इनकी चौथी वाचना। ५. सुधर्मा। इनकी पांचवीं वाचना।
६. मंडिक। इनकी छट्ठी वाचना। 1. बारह अंग ये हैं - आचारांग (आयार), सूत्रकृतांग (सूयगड), ठाणांग,
समवायांग, भगतती अंग, ज्ञातधर्मकथा, (नायधम्मकहा) उपासक, (उवासगदसा) अंतकृत, अनुत्तरापपातिकदशा (अणुत्तरोववाइय), प्रश्न व्याकरण (पण्हावागरण), विपाकश्रुत (विवाग) और दृष्टिवाद (दिट्ठिवाय)। 2. चौदह पूर्वो के नाम ये हैं - उत्पाद, अग्रायणीय, वीर प्रवाद, अस्तिनास्ति प्रवाद,
ज्ञान प्रवाद, सत्य प्रवाद, आत्म प्रवाद, कर्म प्रवाद, प्रत्याख्यान प्रवाद, विद्या प्रवाद, कल्याणक, प्राणावाय, क्रियाविशाल और बिन्दुसार। [ये दृष्टिवाद अंग के अंदर रचे गये हैं। इनकी रचना बारह अंगों के पहले हुई इसलिए ये पूर्वांग कहलाये]
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 263 :