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व्यक्त ने जब ये समाचार सुने तो वे भी महावीर के पास गये। महावीर बोले – 'हे व्यक्त, तुम्हारे दिल में यह शंका है कि, पृथ्वी आदि पंचभूत हैं कि नहीं। वे हैं ऐसा जो भास होता है वह जल में चंद्रमा होने का भास होने के समान है। यह जगत शून्य है। वेदवाक्य है कि 'इत्येश ब्रह्मविधिरंजसाविज्ञेयः' अर्थात् यह सारा जगत स्वप्न के समान है। और इस वाक्य का तुमने यह अर्थ कर लिया है कि सब शून्य है - कुछ नहीं है। यह तुम्हारी भ्रांति है। असल में इसका अभिप्राय यह है कि, जैसे सपने के अंदर की बातें व्यर्थ होती हैं। इसी तरह इस दुनिया का सुख भी व्यर्थ होता है। यह सोचकर मनुष्य को आत्मध्यान में लीन होना चाहिए।'
व्यक्त का संशयं मिट गया और उसने भी अपने ५०० शिष्यों सहित महावीर स्वामी के पास दीक्षा ले ली।
व्यक्त के समाचार सुनकर उपाध्याय सुधर्मा भी महावीर स्वामी के पास गये। प्रभु ने उनको कहा – 'हे सुधर्मा! तुम्हारे मन में परलोक के विषय में शंका है। तुम्हारी धारणा है कि जैसे गेहूं खाद में मिलकर गेहूं रूप में और चावल खाद में मिलकर चावल रूप में पैदा होता है वैसे ही मनुष्य भी मरकर मनुष्य रूप ही में जन्मता है; परंतु यह तुम्हारी धारणा भूल भरी है। मनुष्य योग और कषाय के कारण विविध रूप धारण करता है। वह जिस तरह की भावनाओं से प्रेरित होकर आचरण करता है वैसा ही जन्म उसे मिलता है। यदि वह सरलतां और मृदुता का जीवन बिताता है तो वह फिर से मनुष्य होता है, यदि वह कटुता और वक्रता का जीवन बिताता है तो वह पशु रूप 1. ये कोल्लाक गांव के रहनेवाले थे। इनके पिता का नाम धनुर्मित्र और माता का
नाम वारुणी था। इनका गोत्र भारद्वाज था। इनकी आयु ८० बरस की थी। ये ४० बरस तक गृहस्थ, १२ बरस तक छद्मस्थ साधु और १८ बरस तक केवली
रहे। 2. इनके पिता का नाम धम्मिल और माता का नाम भद्रिला था। अग्निवैश्यायन गोत्र
के ये ब्राह्मण थे और कोल्लाक गांव के रहनेवाले थे। इनकी उम्र १०० बरस की थी। ये ५० बरस तक गृहस्थ ४२ बरस तक छद्मस्थ साधु और ८ बरस तक केवली रहे।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 259 :