________________
स्वामी से बैलों के लिए पूछा; परंतु ध्यानस्थ वीर से उसे कोई जवाब न मिला। वह बैलों को ढूंढने जंगल में गया। सारी रात ढूंढता रहा; मगर उसे . कहीं बैल न मिले। बेचारा हारकर वापिस आया तो क्या देखता है कि बैल महावीर स्वामी के सामने बैठे हुए जुगाली कर रहे हैं। गवाले को बड़ा क्रोध आया। उसने सोचा – ध्यान का ढोंग करनेवाले इसी बाबे ने मेरे बैल छिपाये थे। इसका विचार बैल चुराकर भाग जाने का था। उसने प्रभु को अनेक भली बुरी बातें कहीं; परंतु प्रभु तो मौन ही रहे। वे बोलते भी कैसे? उन्होंने तो रातभर के लिए कायोत्सर्ग कर दिया था। वह महावीर स्वामी को मारने दौडा।
इंद्र ने भगवान ने किस तरह यह रात बितायी ऐसा अबधिज्ञान से देखा तो उसी समय गवाले को प्रभु पर झपटते देखा। तत्काल ही गवाले को अपने दैवबल से वहीं स्तंभित कर इंद्र प्रभु के पास पहुंचा और गवाले को तिरस्कार कर बोला – 'मूर्ख! तूं क्या नहीं जानता कि ये सिद्धार्थ राजा के पुत्र वर्द्धमान स्वामी हैं?' वर्द्धमान स्वामी का नाम सुनते ही बेचारा गवाला भयभीत हुआ और वहां से चला गया।
स्वावलंबन का इंद्र को उपदेश :
जब प्रभु ने कायोत्सर्ग का त्याग किया तब इंद्र ने प्रदक्षिणा देकर वंदना की और कहा - 'प्रभो! बारह वर्ष तक आप पर निरंतर उपसर्ग होंगे इसलिए यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपकी सेवा में रहूं।'
प्रभु ने जलद गंभीरं वाणी में उत्तर दिया- 'हे इंद्र! अर्हत दूसरों की सहायता नहीं चाहते। अंतरंग शत्रु काम क्रोधादि को जीतने के लिए दूसरों की सहायता निकम्मी है। कर्मों का नाशकर केवलज्ञान प्राप्त करने के लिए किन्हीं तीर्थंकर ने आज तक न किसी की सहायता ली है और न भविष्य में लेंगे। वे हमेशां निजात्म- बल ही से कर्मशत्रुओं का नाश कर मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त करते हैं। '
इंद्र मौन हो गया। वह क्या बोलता? प्रभु का कथन स्वावलंबन का और उन्नत बनने का राजमार्ग है। इसके विपरीत वह क्या कहता ? वह प्रभु
: श्री महावीर चरित्र : 214 :