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आकर ठहरा। महावीर स्वामी ने मासक्षमण का पारणा विजय गृहपति के घर किया। देवताओं ने पांच दिव्य प्रकट किये। इससे गोशालक बड़ा प्रभावित हुआ। उसने से प्रार्थना की प्रभु 'आप मेरे धर्माचार्य हैं और मैं आपका धर्मशिष्य हूं।' महावीर कुछ न बोले। तब वह खुद ही अपने को उनका शिष्य बताने लगा। महावीर स्वामी ने दूसरे मासक्षमण का पारणा आनंद के यहां और तीसरे मासक्षमण का पारणा सुनंद के यहां किया था। चौमासा समाप्त होने पर महावीर वहां से विहार कर गये और चौथे मासक्षमण का पारणा कोल्लाक नाम के गांव में बहुल नामक ब्राह्मण के घर किया।
एक बार कार्तिकी पूर्णिमा के दिन गोशालक ने सोचा ये बड़े ज्ञानी हैं तो आज मैं इनके ज्ञान की परीक्षा लूं। उसने पूछा 'हे स्वामी! आज मुझे भिक्षा में क्या मिलेगा?' सिद्धार्थ ने प्रभु के शरीर में प्रवेश कर उत्तर दिया –'बिगड़कर खट्टा बना हुआ कोद्रव और कूरका धान्य तथा दक्षिणा में खोटा रूपया तुझे मिलेगे।' गोशालक को दिनभर भटकने पर भी शाम को वही मिला। इसलिए गोशालक ने स्थिर किया कि जो भविष्य होता है वही होता है। 1
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गोशालक रात को आया; मगर महावीर वहां न मिले। इसलिए वह अपनी चीजें ब्राह्मणों को दे, सिर मुंडा कोल्लाक गांव में गया। वहां भगवान ने गोशालक को शिष्य की तरह स्वीकार किया।
महावीर स्वामी ने कोल्लाक से स्वर्णखल को विहार किया। रास्ते में कई गवाले एक हांडी में खीर बना रहे थे। गोशालक ने कहा 'प्रभो! आइए हम भी खीर का भोजन करें फिर चलेंगे।' सिद्धार्थ बोला – 'हांडी
प्रभु को प्रतिलाभित किया और उसके घर रत्नवृष्टि आदि पंच दिव्य प्रकट हुए। गोशालक यह सब देख सुनकर प्रभु का, अपने मन ही से, शिष्य हो गया। [श्री रामचंद्र जिनागम संग्रह का भगवती सूत्र, १५ वां शतक, पेज ३७०]
1. विशेषावश्यक, भगवती सूत्र और कल्पसूत्र में इस घटना का उल्लेख नहीं है। किन्तु त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र में ही है ।
2. कल्पसूत्र में लिखा है कि, भगवान कुछ न बोले; परंतु भगवती सूत्र और त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र में गोशालक को शिष्य स्वीकारना लिखा है।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 229 :