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वहां से विहार कर प्रभु हरिद्रु नामक गांव में गये और वहां हरिद्रु वृक्ष के नीचे प्रतिमा धारण कर रहे। वहां कोई संघ आया था और रात को आग जलाकर रहा था। बड़े सवेरे आग बुझाये बिना लोग चले गये। आग सुलगती हुई भगवान के पास पहुंची। गोशालक भाग गया; परंतु प्रतिमाधारी भगवान वहां से न हटे और उनके पैर झुलस गये।
हरि से विहार कर प्रभु लांगल गांव में गये और वहां प्रतिमा धारण कर वासुदेव के मंदिर में रहे। 1
लांगल से विहार कर प्रभु आवर्त्त नामक गांव में आये और वहां बलदेव के मंदिर में प्रतिमा धारण कर रहे | 2
आवर्त्त गांव से विहार कर प्रभु चोराक गांव में आये और वहां एकांत स्थान में प्रतिमा धारण कर रहे। 3
ने कहा कि मरे हुए बच्चें का मांस रुधिर सहित घी और शहद व दुग्ध में डालना और उसे पकाकर किसी भिक्षुक को खिला देना। भद्रा ने उस दिन वैसी ही खीर तैयार कर रखी थी। गोशालक फिरता हुआ वहीं पहुंचा और भद्रा ने उसे वह खीर खिला दी। सुभद्रा ने पहले ही से घर का नया दरवाजा बना रखा था। गोशालक स्थान पर पहुँचा। सिद्धार्थ ने उसे खीर की सारी बात कही। उसने उल्टी की तो उसमें से नखों के छोटे टुकड़े आदि निकले। गोशालक बड़ा नाराज हुआ और पितृदत्त के घर गया, परंतु घर का रूप बदल गया था इसलिए उसे घर न मिला। तब उसने शाप दिया 'यदि मेरे गुरु का तप हो तो यह सारा मुहल्ला जल जाय। ' किसी व्यंतर देव ने महावीर स्वामी की महिमा कायम रखने के लिए सारा मुहल्ला जला दिया।
1. यहां गोशालक ने लड़कों को डराया, इसलिए उनके मातापिता ने गोशालक को पीटा। वृद्धों ने प्रभु का भक्त जान छुड़ाया।
2. यहां भी बालकों को डराने से गोशालक पीटा गया। कुछ ने सोचा इसके गुरु को मारना चाहिए। वे महावीर को मारने दौड़े। तब किसी अर्हतभक्त व्यंतर ने बलदेव के शरीर में प्रवेश कर महावीर प्रभु की रक्षा की।
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3. गोशालक यहां भिक्षार्थ गया। एक जगह गोठ के लिए रसोई हो रही थी । गोशालक छिपकर देखने लगा कि, रसोई हुई या नहीं? इसको छिपा देख लोगों ने चोर समझा और पीटा। गोशालक ने शाप दिया
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'अगर मेरे गुरु के तप का प्रभाव हो तो इन लोगों का स्थान जल जाय। ' महावीर के भक्त व्यंतर ने स्थान जला दिया।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 233 :