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श्रावस्ती नगरी में दसवां चौमासा :
वाणिजक गांव से विहार कर प्रभु श्रावस्ती नगरी में आये और चातुर्मास वहीं बिताया।
चातुर्मास पूरा होने पर प्रभु सानुयष्टिक गांव आये। वहां भद्रा, महाभद्रा और सर्वतोभद्रा नामक प्रतिमाएँ अंगीकार की। और पारणा किये बिना तीनों प्रतिमाएं की। फिर पारणा करने आनंद नामक गृहस्थ के घर गये। वहां उसकी बहुला नाम की दासी बासी अन्न फेंकने वाली थी। प्रभु को देखकर उसने कहा – 'हे साधो! तुम्हें यह अन्न कल्पता है?' महावीर ने हाथ लंबे किये। दासी ने वह अन्न हाथ में रख दिया। प्रभु ने उसे खाया। देवताओं ने पांच दिव्य प्रकट किये। वहां के राजा ने बहुला को दासीपन से मुक्त किया। संगम देवकृत २० उपसर्ग :
सानुयष्टिक गांव से विहार कर महावीर म्लेच्छों से भरी हुई द्रढ़ भूमि में आये। वहां पेढ़ाला नामक गांव के पास पेढ़ाला नामक उद्यान के पोलास नामक चैत्य में एक शिला परं, अट्ठम तप सहित एक रात्रि की प्रतिमा से रहे। उस समय सौधर्मेन्द्र ने महावीर स्वामी को नमस्कार कर उनके धैर्य की 1. विशेषावश्यक में इस गांव का नाम सानुलष्ठ लिखा है। 2. इन प्रतिमाओं को अंगीकार करने की विधि यह है – १. भद्रा-छ8 का तप
करे, एक पुद्गल पर दृष्टि स्थिर करे। पहले दिन दिनभर पूर्व की तरफ मुंह रखे, पहली रात रातभर दक्षिण की तरफ मुंह रखे; दूसरे दिन दिनभर पश्चिम की तरफ मुख रखे और दूसरी रात रातभर उत्तर की तरफ मुख रखे। २. महाभद्राइसमें दशम तप (चार उपवास) करे। एक पुद्गल पर नजर रखे। पहले दिन दिनरात पूर्व की तरफ मुंह रखे, दूसरे दिन दिनरात दक्षिण की तरफ मुंह रखे, तीसरे दिन दिनरात पश्चिम की तरफ मुंह रखे और चौथे दिन दिनरात उत्तर की तरफ मुंह रखे। ३. सर्वतो भद्रा - इसमें बावीशम (दस उपवास) का तप करे। इसमें दस दिन रात तक प्रतिदिन एक-एक दिशा की तरफ मुंह रखे। आठ दिशाओं में एक पुद्गल पर दृष्टि रखे। उर्द्ध और अधो दिशावाले दिन उर्द्ध और अधो पुद्गल पर दृष्टि रखे।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 241 :