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समागम गांव में आये और कायोत्सर्ग करके रहे। गोशालक ने वहां सदाव्रत में भोजन किया।
कदली समागम से विहार कर प्रभु जंबूखंड गांव में गये। और वहां से तुंबाक1 गांव में गये। वहां नंदीषेणाचार्य भी अपने शिष्यों सहित ठहरे हुए थे।
जंबूखंड से विहार कर महावीर कूपिका गांव गये। वहां सिपाही दोनों को गुप्तचर जानकर, हैरान करने लगे। प्रगल्भा और विजया नाम की दो साध्वियों ने जो साधुपना न पाल सकने के कारण परिव्राजिकाएँ हो गयी
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थी- उन्हें छुड़ाया।
कूपिक गांव से प्रभु विशालपुर की तरफ चले । आगे दो रास्ते फटते थे। वहां गोशालक महावीर स्वामी से अलग होकर राजगृह की तरफ चला। वे विशाली पहुंचे। वहां एक लुहार का मकान सूना पड़ा था। लुहार बीमार होने से, छः महीने हुए कहीं गया हुआ था । महावीर स्वामी लोगों की आज्ञा लेकर लुहार के मकान में कायोत्सर्ग करके रहे। लुहार भी उसी दिन अच्छा होकर वापिस आया। अपने मकान में साधु को देखकर उसने
1. कल्पसूत्र और विशेषावश्यक में इसका नाम क्रमशः 'तंबाल' और 'तंबाक' लिखा है।
2. नंदीषेणाचार्य पार्श्वनाथ की शिष्य परंपरा में से थे। गोशालक ने इनके शिष्यों का भीं मुनिचंद्राचार्य के शिष्यों की तरह अपमान किया था। नंदीषेणाचार्य जिनकल्प की तूलना करने किसी चौक में कायोत्सर्ग कर रहे थे। चौकीदारों ने उन्हें चोर समझकर मार डाला।
3. गोशालक एक जंगल में पहुंचा। वहां चोरों ने उसे देखा। एक बोला 'कोई द्रव्यहीन नग्न पुरुष आ रहा है।' दूसरे बोले 'वह द्रव्यहीन और नग्न है तो भी उसे छोड़ना नहीं चाहिए। संभव है, वह कोई जासूस हो।' फिर वे झाड़ से उतरकर आये और एक-एक कर उस पर सवारी करने लगे। आखिर वह थककर गिर पड़ा तब चोर उसे छोड़कर चले गये। गोशालक महावीर को. छोड़ने के लिए पश्चात्ताप करता हुआ छ: महीने के बाद पुनः उनसे जाकर भद्रिकापुरी में मिला।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 235 :