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पुष्प नामक सामुद्रिक को दर्शन से लाभ :
नदी के तीर पर उतर कर प्रभु विहार कर गये। उनके पैरों के चिह्नों को पीछे से पुष्प नाम के सामुद्रिक ने देखा। उसने सोचा, इधर चक्रवर्ती गये हैं। चलूं उनकी सेवा करूं और कुछ लाभ उठाऊं। प्रभु स्थूणक नामक गांव के पास जा, कायोत्सर्ग कर रहे। पुष्प पदचिह्नों पर गया। मगर चिह्नवाले को साधु देख दुःखी हुआ। और सोचा यह शास्त्र झूठे है तब इंद्र को यह बात मालूम हुई। उसने आकर सामुद्रिक को सत्य हकिकत समझाकर मनवांछित धन दिया और उसे प्रभुदर्शन का फल दिया। नालंदा में दूसरा चौमासा :
प्रभु विहार करते हुए राजगृह में आये और शहर के बाहर थोड़ी दूर पर नालंदा नामक स्थान में एक जुलाहे के, कपड़े बुनने के बड़े स्थान में, उसकी इजाजत लेकर रहे।
दूसरा चौमासा प्रभु ने वहीं किया। प्रभु ने मासक्षमण (एक महीने का उपवास) कर कायोत्सर्ग किया। वहां गोशालक नाम का मंख प्रभु के पास
नहीं थे, दौड़े नहीं थे। उस दिन खूब जुते और दौड़े इससे उनकी हड्डियां ढीली हो गयी। मित्र बैलों को चुप चाप वापिस बांध गया वे घर आकर पड़े रहे। जिनदास घर आया। उसने बैलों की खराब हालत देखी। उसने बैलों को खिलाना पिलाना चाहा। मगर उनने कुछ न खाया पिया। पीछे से उसे असली हाल मालूम हुआ। उसे बड़ा रंज हुआ। उसने बैलों को पच्चक्खाण कराया और उनके जीवन की अंतिम घड़ी तक सेठ पास बैठकर उनको नवकार मंत्र सुनाता रहा। इसके प्रभाव से वे मरकर कंबल और शंबल नागकुमार नाम के देव हुए। उन्होंने यह
उपद्रव दूर किया। 2. मंखली नाम का एक मंख पाटियों पर चित्र बना, लोगों को बता भीख मांगकर
खानेवाली जाति विशेष थी। उसके भद्रा नाम की स्त्री थी। वे दोनों चित्र बेचते हुए एक बार शखण गांव में गये। एक ब्राह्मण की गोशाला में ठहरे। वही भद्रा ने पुत्र प्रसव किया। उसका नाम 'गोशालक' रखा। वह जवान हुआ तब अपने मातापिता से लड़कर निकल गया और घूमता हुआ, नालंदा में जहां महावीर स्वामी ठहरे थे वहां पहुंचा। दूसरे दिन मासक्षमण का पारणा करने प्रभु विजय सेठ के, घर कर पात्र द्वारा, गोचरी लेने गये। सेठ ने भक्तिपूर्वक विधि सहित
': श्री महावीर चरित्र : 228 :