________________
दूसरे के दुःख का खयाल :
दीक्षा लिये को एक बरस हो जाने के बाद महावीर स्वामी विहार करते हुए फिर मोराक गांव आये और गांव के बाहर उद्यान में प्रतिमा धारण कर रहे।
उस गांव में अच्छंदक नाम का एक ज्योतिषी रहता था और यंत्र मंत्रादि से अपनी आजीविका चलाता था। उसका प्रभाव सारे गांव में था। (उसके प्रभाव के कारण किसी ने प्रभु की पूजा प्रतिष्ठा नहीं की इसलिए) उसके प्रभाव को सिद्धार्थ न सह सका इससे और लोगों से प्रभु की पूजा कराने के इरादे से, उसने गांव के लोगों को चमत्कार दिखाया। इससे लोग 1अच्छंदक की उपेक्षा करने लगे। उसका मान घट गया और उसे रोटी 1. अच्छंदक का पूरा हाल त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र से यहां अनुदित किया
जाता है – 'उस समय उस (मोराक) गांव में अच्छंदक नाम का एक पाखंडी रहता था। वह मंत्र, तंत्रादि से अपनी आजीविका चलाता था। उसके महात्म्य . को सिद्धार्थ व्यंतर सहन न कर सका इससे और वीर प्रभु की पूजा की अभिलाषा से सिद्धार्थ ने प्रभु के शरीर में प्रवेश किया। फिर एक जाते हुए गवाले को बुलाया और कहा - 'आज तूंने सौवीर (एक तरह की कांजी) के साथ कंगकूर (एक तरह का धान्य) का भोजन किया है। अभी तूं बैलों की रक्षा करने जा रहा है। यहां आते हुए तूंने एक सर्प को देखा था और आज रात को सपने में तूं खूब रोया था। गवाल! सच कह? मैंने जो कुछ कहा है वह यथार्थ है या नहीं?' गवाला बोला - 'बिलकुलं सही है।' उसके बाद सिद्धार्थ ने और भी कई ऐसी बातें कहीं जिन्हें सुनकर गवाले को बड़ा अचरज हुआ। उसने गांव में जाकर कहा-'अपने गांव के बाहर एक त्रिकाल की बात जाननेवाले महात्मा आये हैं। उन्होंने मुझे सब सच्ची बातें बतायी हैं।' लोग कौतुक से फूल, अक्षत आदि पूजा का सामान लेकर महावीर स्वामी के पास आये। उन्हें देखकर सिद्धार्थ बोला – 'क्या तुम मेरा चमत्कार देखने आये हो?' लोगों ने कहा – 'हां।' तब सिद्धार्थ ने उन्हें कई ऐसी बातें बतायी जिन्हें उन्होंने पहले देखी, सुनी या अनुभवी थी। सिद्धार्थ ने कई भविष्य की बातें भी बतायी। इससे लोगों ने बड़े आदर के साथ प्रभु की पूजा, वंदना की। लोग चले. गये। लोग इसी तरह कई दिन तक आते रहे और सिद्धार्थ उन्हें नयी नयी बातें बताता रहा।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 221 :