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असर नहीं हुआ, तब उसने भयंकर हाथी का रूप धारण किया; परंतु महावीर स्वामी ने उसकी भी परवाह न की। तब उसने भूमि और आकाश के मानदंड जैसे शरीरवाले पिशाच का रूप धरा; मगर प्रभु उससे भी न डरे तब उस दुष्ट ने यमराज के पाश के समान भयंकर सर्प का रूप धारण किया। अमोघ विष -के झरणे के समान उस सर्प ने प्रभु के शरीर को दृढ़ता के साथ कस लिये और डसने लगा। जब सर्प का भी कोई असर न हुआ तब उसने प्रभु के सिर, आंखें, मूत्राशय, नासिका, दांत, पीठ और नाक इन सात स्थानों पर पीड़ा उत्पन्न की। वेदना इतनी तीव्र थी कि, सात की जगह एक की पीड़ा ही किसी सामान्य मनुष्य के होती तो उसका प्राणांत हो जाता; मगर महावीर स्वामी पर उसका कुछ भी असर न हुआ।'
जब शूलपाणि प्रभु को कोई हानि न पहुंचा सका तब उसे अचरज हुआ और उसने प्रभु से क्षमा मांगी। इंद्र का नियत किया हुआ सिद्धार्थ नाम का देव भी पीछे से आया और उसने शूलपाणि यक्ष को डराया' यक्ष शांत . रहा। तब सिद्धार्थ ने उसे धर्मोपदेश दिया। यक्ष सम्यक्त्व धारण कर प्रभु की भक्ति करने लगा।
- रातभर महावीर स्वामी का शरीर उपसर्ग सहते सहते शिथिल हो गया था। इसलिए उन्हें सवेरा होते होते कुछ नींद आ गयी। उसमें उन्होंने दस स्वप्नं देखें। .
.. गांव के लोग सवेरे ही मंदिर में आये। उन्होंने महावीर स्वामी को सुरक्षित और पूजित देखकर हर्षनाद किया। गांव के लोगों में उत्पल नाम का निमित्तं ज्ञानी भी था। उसने महावीर स्वामी को, जो स्वप्न आये थे .. 1. भगवान पर. रातभर उपसर्ग हुए मगर सिद्धार्थ न मालूम कहां लापता रहा। जब
कष्ट सहकर महावीर ने कष्टदाता के हृदय को बदल दिया तब सिद्धार्थ देवता यक्ष को धमकाने आया। इससे मालूम होता है कि कर्म के भोग भोगने ही
हैं किसी की मदद कोई काम नहीं देती। मनुष्य आप ही शांति से कष्ट सहकर दुःखों से मुक्त हो सकता है। पं. श्री कल्याण विजयजी ने 'श्रमण भगवान् महावीर' पुस्तक में सिद्धार्थ के मुख से कहलवाने की बातें संदिग्ध बतायी है। जहां आवश्यक था वहां भगवान स्वयं बोले हैं ऐसा लिखा है।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 219 :