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गया और प्रजापति ने उसका यथायोग्य सत्कार किया। त्रिपृष्ठ इस नवागंतुकपर बड़ा नाराज हुआ। उसने अपने एक मंत्री से पूछा -- 'यह कौन है?' उसने जवाब दिया -- 'यह अश्वग्रीव प्रति वासुदेव का पराक्रमी चंडवेग दूत है।' अभिमानी त्रिपृष्ठ ने कहा -- 'इस दुष्ट को मैं जरूर दंड दूंगा। यह चाहे कितने ही बड़े राजा का दूत हो, मगर इजाजत लिये बिना सभा में आने का इसे कोई हक नहीं था।' मगर वहां वह कुछ नहीं बोला। उसने अपने आदमियों से कहा -- 'यह जब यहां से बिदा हो तब तुम मुझे खबर देना।' - थोड़े दिन के बाद प्रजापति ने चंडवेग को विदा दी। राजकुमार त्रिपृष्ठ को उसके जाने के समाचार दिये गये। दोनों भाइयों ने उसे मार्ग में जाते हुए को रोककर कहा -- 'रे दुष्ट! रे मूर्ख! तुंने घमंड के मारे नियमों का उल्लंघन कर राजसभा में प्रवेश किया है और हमारे राग-रंग में विघ्न डाला है। इसलिए आज तुझे इसकी सजा दी जायगी।' त्रिपंष्ठ ने तलवार निकाली। अचल ने उसे ऐसा करने से रोका और अपने आदमियों को इशारा किया। आदमियों ने चंडवेग से हथियार छीन लिये और उसे खूब पीटा। चंडवेग के साथी सभी भाग गये।
दूत की ऐसी दुर्गती हुई सुनकर प्रजापति को दुःख हुआ। उसने आदमी भेजकर दूत को वापिस बुलाया, लड़के की कृति के लिए दुःख प्रदर्शित किया और उसे अनेक तरह से इनाम.इकराम देकर संतुष्ट किया। और इस घटना की खबर अश्वग्रील को न देने का उससे वादा कराया।
अपमानित दूत अश्वग्रीव के पास पहुंचा। उसके पहले ही उसके साथियों ने जाकर पोतनपुर की घटना के समाचार सुना दिये थे। अपना वादा पूरा होने का कोई उपाय न देख दूत ने भी सारा वृत्तांत सुना दिया। सुनकर अश्वग्रीव को क्रोध हो आया; परंतु प्रजापति की क्षमायाचना के समाचार सुनकर कुछ शांति भी हुई। उसने विचारा कि नैमैतिक की एक बात तो सच्ची हुई है। अब दूसरी बात की सत्यता जानने के लिए भी उपाय करना चाहिए। उसने दूत भेजकर प्रजापति को शाली के खेत की रक्षा के लिए जाने का आदेश दिया।
प्रजापति ने अश्वग्रीव की आज्ञा दोनों कुमारों को सुना दी। त्रिपृष्ठ
: श्री महावीर चरित्र : 202 :