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वंश के सिद्धार्थ नामक राजा राज्य करते हैं। उनकी रानी वसिष्ठ गोत्र की त्रिशला गर्भवती है। उनके गर्भ में कन्या है। उसे ले जाकर ब्राह्मणकुंड की देवानंदा नामा ब्राह्मणी के गर्भ में रखना और देवानंदा के गर्भ को लाकर त्रिशला माता के गर्भ में रखना । '
हरीणैगमेषी देव ने इंद्र की आज्ञा का पालन किया। उसने जब देवानंदा का गर्भ हरण किया तब देवानंदा ने चौदहों महा स्वप्न अपने मुख से निकलते देखे। वह सहसा उठ बैठी तो उसे मालूम हुआ कि, उसका गर्भस्थ बालक किसीने हर लिया है। वह बहुत रोई चिल्लायी; परंतु सब बेकार था। गर्भस्थ बालक निकाल लिया गया था। उसका वापिस आना असंभव था।
आसोज वदि १३ के दिन चंद्रमा जब उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में था तब हरणैगमेषी देव ने नंदन ऋषी के जीव को त्रिशलादेवी के गर्भ में रखा। त्रिशलादेवी को चौदह महास्वप्न आये। इंद्रादि देवों ने च्यवन कल्याणक मनाया। स्वप्न पाठकों ने स्वप्न फल सुनाया।
गर्भ को जब सात महीने बीते उसके बाद एक दिन गर्भस्थ महावीर स्वामी ने सोचा कि, मेरे हिलने से माता को कष्ट होता है। इसलिए गर्भावास
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1. कल्पसूत्र और विशेषावश्यक में सिद्धार्थ को ज्ञात कुल का क्षत्रिय लिखा है, राजा नहीं। "क्षत्रियकुंड गांव में सिद्धार्थ नाम का क्षत्रिय है। उसकी भार्या त्रिशला की कोख में भगवान को ले जा।' (आगमोदय समिति का विशेषावश्यक भाग १ ला पेज ५९१) 'ऋषभदेव के वंश में जन्मे हुए ज्ञात नामक क्षत्रिय विशेषों के मध्य में जन्मे हुए काश्यपगोत्र के सिद्धार्थ नामक क्षत्रिय की भार्या वसिष्ठ गोत्र की 'त्रिशला नामक क्षत्राणी की कोख में रखने का निश्चय किया। (कल्पसूत्र सुख बोधिका पेज ८३) इतिहासज्ञों का मत है कि, क्षत्रियकुंड वैशाली का एक परा (SUBARBAN ) था । वैशाली में गणराज्य था। सिद्धार्थ क्षत्रियकुंड की तरफ से प्रतिनिधि और क्षत्रियकुंडवासियों के नेता थे। ये ज्ञात कुल के थे। आवश्यक चूर्णी में 'ऋषभदेव के अपने ही लोगों को ज्ञात बताया है । ज्ञातों का कुल ज्ञातकुल हुआ और उनका वंश ज्ञातवंश कहलाया था। इक्ष्वाकुवंश भी ऋषभदेव ही का है। इससे जान पड़ता है कि ज्ञातवंश और इक्ष्वाकुवंश एक ही वंश के दो नाम हैं।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 207 :