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यह सुनकर सिंह का बध करने जाने के लिए तैयार हो गया। दोनों भाइयों ने तुंगगिरि के खेतों के पास जाकर डेरे डाले।
__ लोगों के द्वारा सिंह की अतुल शक्ति का पता चला। बड़े-बड़े बलवानो को उसने पलक मारते मार गिराया था। अच्छे अच्छे बहादुर उसके ग्रास बन गये थे। ऐसे विक्राल सिंह को मारना बड़ा कठिन कार्य था। परंतु त्रिपृष्ठ एवं अचलकुमार ने उसको उसकी गुफा में जा ललकारा। सिंह ने टेढी निगाह करके देखा और दो जवानों को अपनी गुफा के सामने खड़ा देखकर वापिस बेपरवाही से आंख बंद कर लीं। त्रिपृष्ट के नौकरों ने चारों तरफ से चिल्लाना और पत्थर फेंकना आरंभ किया। यह बात शेर को असह्य हुई। उसने उठकर गर्जना की। उसकी गर्जना सुनकर त्रिपृष्ठ के कई नौकर भय से गिर पड़े, पक्षी पेड़ों से नीचे आ रहे और पशु खाना और चलना फिरना छोड़ ताकने लगे। यह सब हुआ; परंतु दो जवान तो उसकी गुफा के सामने कुछ दूर स्थिर खड़े ही रहे।
शेर ने गुफा से बाहर निकलकर खड़े हुए जवानों पर छलांग मारी। त्रिपृष्ठ ने लपक कर शेर के जबड़े पकड़े और चीर दिया। दो टुकड़े होने पर भी.शेर का दम न निकला। वह तड़प रहा था और यह सोचकर दुःखी था कि आज इस छोकरे ने मुझे मार डाला। हजारों बड़े-बड़े शस्त्रधारियों को मैंने पलक मारते यमधाम पहुंचाया था उसी मुझको, इस छोकरे ने क्षणभर मैं चीरकर फेंक दिया। त्रिपृष्ठ के सारथी ने-जो महावीर के भव में गौतम गणधर हुए थे - कहा -- 'हे सिंह, जैसे तं पशुओं में सिंह है वैसे ही ये त्रिपृष्ठ मनुष्यों में सिंह हैं और वासुदेव है। तेरा सद्भाग्य है कि, तूं इनके हाथ से मारा गया हैं।' सिंह को यह सुनकर संतोष हुआ और वह मरकर चौथी नरक में गया। ___त्रिपृष्ठ ने शेर का चमड़ा निकलवाया और उसे लेकर वह राजधानी को चला। अग्रीव को यह खबर मिली। उसको निश्चय हो गया कि मेरी मौत आ गयी है। उसने शंका में जीवन बिताना ठीक न समझा और प्रजापति को कहलाया कि, तुम्हारे लड़कों ने जो बहादुरी की उससे मैं बहुत खुश हूं। उन्हें शेर के चमड़े के साथ मेरे पास भेज दो। मैं उनको इनाम दूंगा।'
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 203 :