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उसी समय एक भंवरा गूंजता हुआ आया और उस बाला के मुख पर मंडराने और रूपरस का पान करने की कोशिश करने लगा। वह उसको हटाती; परंतु वह बार-बार लौट आता था। इससे घबराकर वह पुकारी - 'अरे कोई मेरी इस भ्रमर-राक्षस से रक्षा करो! रक्षा करो!' उसके साथ ही एक कन्या बोली – 'सखि! सुवर्णबाहु के सिवा तुम्हारी रक्षा करे ऐसा कोई पुरुष दुनिया में नहीं है। इसलिए तुम उन्हीं को पुकारो।' सुवर्णबाहु तो इनसे बातें करने का मौका ढूंढ ही रहा था। वह तुरंत यह कहता हुआ झाड़ की आड़ से निकल आया कि – 'जब तक कुलिश बाहु का पुत्र सुवर्णबाहु मौजूद है, तब तक किसकी मजाल है कि, तुम्हें दुःख दे।' फिर उसने एक दुपट्टे के पल्ले से भंवरे को पकड़ा। भंवरा बेचारा चिल्लाता हुआ वहां से चला गया। .
अचानक एक पुरुष को सामने देखकर सभी बालाएं ऐसी घबरा गयी जैसे शेर को सामने देखकर मनुष्य व्याकुल हो जाते हैं। वे भयविह्वल खड़ी हुई पृथ्वी की तरफ देखने लगी। सुवर्णबाहु ने उनको सांतवना देते हुए बड़े मधुर शब्दों में कहा – 'बालाओ! डरो मत! मैं तुम्हारा रक्षक हूं। कहो, तुम यहां निर्विघ्न तप कर सकती हो न? तुम्हें कोई क्लेश तो नहीं है?' राजा के सुमधुर शब्दों से उनका भय कम हुआ। एक बोली – 'जब तक पृथ्वी पर सुवर्ण बाहु राजा राज्य करता है, तब तक किसे अपना जीवन भारी होगा कि वह हमारे तप में विघ्न डालेगा? अतिथि, आइए। बैठिए।'
एक बाला ने कदंब पेड़ के नीचे आसन बिछा दिया। सुवर्ण बाहु उस पर बैठ गये। दूसरी ने पूछा – 'महाशय, आप कौन हैं? और इस वन में आने का आपने कैसे कष्ट किया है?' सुवर्णबाहु बड़े संकोच में पड़े। वे कैसे कहते कि, मैं ही सुवर्ण बाहु हूं और अपने को दूसरा कोई बताकर मिथ्या बोलने का दोष भी कैसे करते? उन्हें चूप देखकर तीसरी बोली – 'बहन! ये तो खुद सुवर्णबाहु राजा हैं। क्या तुमने इनको यह कहते नहीं सुना कि'जब तक सुवर्णबाहु मौजूद है तब तक किस की मजाल है सो तुम्हें दुःख दे?' फिर राजा से पूछा – 'महाराज! हमारी असभ्यता क्षमा कीजिए और
: श्री पार्श्वनाथ चरित्र : 180 :