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मैं क्यों साधुओं को बुरा समझं? ये लोग जब अपने शरीर की भी परवाह नहीं करते तो मुझ असंयमी की परवाह न की इसमें कौनसी बुराई हुई? फिर सोचा - 'मगर भविष्य के लिए तो मुझे इसका उपाय करना ही चाहिए। मैं अब रोगमुक्त होने के बाद कुछ शिष्य बनाऊंगा।
मरीचि जब अच्छा हो गया तब उसके पास एक कपिल नाम का पुरुष धर्मोपदेश सुनने आया। मरीचि ने उसे यहाँ भी धर्म है ऐसा कहकर अपना शिष्य बनाया और तभी से त्रिदंडी धर्म की हमेशा के लिए नींव पड़ गयी। इस उत्सूत्र कथन द्वारा मिथ्याधर्म की नींव डालने से मरीचि के जीव ने कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण का संसार उपार्जन किया।
अपने मिथ्या धर्मोपदेश की आलोचना किये बिना मरकर मरीचि का जीव ब्रह्मलोक में देवता हुआ। कपिल ने अपने मत का खूब उपदेश दिया और आसूर्य आदि को अपना शिष्य बनाया कपिल भी मरकर देवता हुआ। वहां अवधिज्ञान से अपने पूर्व जन्म का हल जानकर वह पृथ्वी पर आया और अपने आसूर्य आदि को अपने मत का नाम बताया। तभी से 'सांख्य दर्शन' प्रचलित हुआ। कौशिक ब्राह्मण का भव :- ..
. ब्रह्मदेवलोक से च्यवकर मरीचि का जीव कोल्लाक नाम के गांव में अस्सी लाख पूर्व की आयुवाला कौशिक नाम का ब्राह्मण हुआ। उस भव में भी उसने त्रिदंडी संन्यास धारण किया। उसके बाद मरीचि ने अनेक भवों में भ्रमण किया। विश्वभूतिका भव :-.
राजगृह में विश्वनंदी नाम का राजा राज्य करता था। उसके प्रियंगु 1. श्री मद्भागवत हिन्दु धर्म का एक माननीय ग्रंथ है। उसमें सांख्यमत की उत्पत्ति
इस तरह लिखी है - 'मनुजी की कन्या देवहूती थी। उसके साथ कर्दम ऋषि का ब्याह हुआ। देवहूति के गर्भ से नौ कन्याएँ और एक पुत्र हुआ। पुत्र का नाम कपिल था। कपिलजी चौबीस अवतारों में से पांचवें अवतार हुए हैं। इन्होंने अपनी माता देवहूतीजी को ज्ञान कराने के लिए जो तत्त्वोपदेश दिया, वही तत्त्वोपदेश सांख्य दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।'
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 197 :