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वह और भी अधिक खीझ गया। उसने पास में पड़ा हुआ एक बड़ा पत्थर उठा लिया और मरुभूमि के सिर पर दे मारा। इसका सिर फट गया। वह पीडा से व्याकुल हो छटपटाने लगा और आर्त ध्यान में मरा। दूसरा भव (हाथी) :
अंत में आर्तध्यान में मरा इससे वह पशु योनि में जन्मा और विंध्यगिरि में यूथपति हाथी हुआ।
एक दिन पोतनपुर के राजा अरविंद अपनी छत पर बैठे हुए थे। आकाश में घनघोर घटा छायी हुई थी। बिजली चमक रही थी। इंद्रधनुष तना हुआ था। आकाश बड़ा सुहावना मालूम हो रहा था। उसी समय जोर की हवा चली। मेघ छिन्न भिन्न हो गये। बिजली की चमक जाती रही और इंद्रधनुष का कहीं नाम निशान भी न रहा। राजा ने सोचा, जीवन सुख-धनघटा भी इसी तरह आयु समाप्ति की हवा से नष्ट हो जायगी। इसलिए जीवन समाप्ति के पहले जितना हो सके उतना धर्म कर लेना चाहिए। राजा. अरविंद ने समंतभद्राचार्य के पास दीक्षा ले ली। उन्हें अवधिज्ञान हुआ।
एक दिन अरविंद मुनि सागरदत्त सेठ के साथ अष्टापदजी पर वंदना करने चले। रास्ते में उन्होंने एक सरोवर के किनारे पड़ाव डाला। सभी स्त्री पुरुष अपने-अपने काम में लगे। अरविंद मुनि एक तरफ कायोत्सर्ग ध्यान में लीन हो गये।
___ मरुभूमि हाथी सरोवर पर आया। पानी में खूब कल्लोलें कर वापिस चला। सरोवर के किनारे पड़ाव को देखकर वह उसी तरफ झपटा। कइयों को पैरों तले रौंदा और कइयों को सूंड में पकड़कर फेंक दिया। लोग इधर उधर अपने प्राण लेकर भागे। अरविंद मुनि ध्यान में लीन खड़े रहे। हाथी उन पर झपटा; मगर उनके पास जाकर एकदम रुक गया। मुनि के तेज के सामने हाथी की क्रूरता जाती रही। वह मुनि के चेहरे की तरफ चुपचाप देखने लगा।
___मुनि काउसग्ग पार कर बोले – 'हे मरुभूति! अपने पूर्व भव को याद कर। मुझ अरविंद को पहचान। अपने बुरे परिणामों का फल हाथी होकर भोग रहा है। अब हत्याएँ करके क्या पाप को और भी बढ़ाना चाहता
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 175 :