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सुविधिनाथजी मोक्ष में गये।
श्री सुविधिनाथ मोक्ष में गये उसके बाद हुंडा अवसर्पिणी काल के दोष से त्यागी साधु न रहे। तब लोग श्रावकों से ही धर्म पूछने लगे। श्रावक लोग अपनी इच्छानुसार धर्मोपदेश देने लगे। भद्रिक लोग उन्हें, उपकारी समझकर, द्रव्यादि भेट में देने लगे। लोभ बुरी बला है। उन श्रावकों ने लोभ के वश होकर उपदेश दिया – 'तुम लोग भूमिदान, स्वर्णदान, रूप्यदान, गृहदान, अवदान, राजदान, लोहदान, तिलदान, कपासदान आदि दान दिया करो। इन दोनों से तुमको इस लोक में और परलोक में महान फलों की प्राप्ति होगी।'
इस उपदेश के अनुसार लोग. दान भी देंने लगे। लोभ से मार्गच्युत बने हुए उन श्रावकों ने दान भी खुद ही लेना आरंभ कर दिया। वे ही लोगों के गृहस्थ गुरु बन गये। इन श्रावकों में उन लोगों की संतति मुख्य थी जो भरत चक्रवर्ती के समय में 'माहन', 'माहन' बोलते हुए ब्राह्मणों के नाम से मशहूर हो गये थे। और इसलिए वे श्रावक मुख्यतया ब्राह्मण कहलाये।
बैंगन एक राजा को एक दिन बैंगन अच्छे लगे। उसने बैंगन को अच्छा बताया। तब सभी लोगों ने बैंगन की प्रशंसा की। बार-बार प्रशंसा सुनकर राजा बैंगन अधिक खाने लगा। तब गरमी हो गयी राजा ने बैंगन की निंदा की। तब सभी लोगों ने निंदा की। राजा ने कहा-उस दिन तुम बैंगन की कितनी प्रशंसा करते थे। और आज निंदा करते हो कारण क्या?
लोगों ने कहा-हम आपके नौकर है? बैंगन के नहीं।
सुविधिनाथ सम्मेत शिखर पर, मोक्ष पधारें सुप्रभ कूट पर।
कोडा कोडी शिवपढ़ पावे, पूजन आवे पाप स्वपावे ॥
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 83 :