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बारहवां भव, :- (भगवान शांतिनाथ) :
इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में कुरुदेश के अंदर हस्तिनापुर नाम का एक बड़ा वैभवशाली नगर था। उसमें इक्ष्वाकु वंशी विश्वसेन नामक राजा राज्य करता था। वह राजा धर्मात्मा, प्रजापालक, पराक्रमी और वीर था। उसकी धर्मपत्नी का नाम अचिरा देवी था। महादेवी अचिरा बड़ी पतिपरायणा और रूपगुण संपन्ना थी। नृपशिरोमणि विश्वसेन अपनी धर्मपत्नी के साथ साम्राज्य लक्ष्मी भोगते थे।
. एक दिन अनुत्तर विमान में मुख्य सर्वार्थसिद्ध नाम के विमान से च्यवकर भाद्रपद वदि ७ के दिन भरणी नक्षत्र में चंद्रमा का योग होने पर पूर्वजन्म के राजा मेघरथ का जीव महादेवी के कोख में आया। उस समय रात को अचिरा ने चक्रवर्ती और तीर्थंकर के जन्म की सूचना देने वाले चौदह महा स्वप्न दो बार देखे। प्रातःकाल ही महादेवी ने पति से स्वप्नों का सारा वृत्तांत वर्णन किया। राजा ने कहा – 'हे महादेवी! तुम्हारे अलौकिक गुणों वाला एक पुत्र होगा।' , - राजा ने स्वप्न के फल-को जाननेवाले निमित्तियों को बुलाकर स्वप्न का फल पूछा। उन्होंने उत्तर दिया – 'स्वामिन्! इन स्वप्नों से आपके यहां एक ऐसा पुत्र पैदा होगा जो चक्रवर्ती भी होगा और तीर्थंकर भी।'
इंद्रादि देवों के आसन कांपे और उन्होंने प्रभु का च्यवनकल्याणक महोत्सव किया। ___नौ मास पूरे होने पर ज्येष्ठ मास की वदि तेरस के दिन भरणी नक्षत्र में अचिरादेवी के गर्भ से, स्वर्ण जैसी कांतिवाले एक सुंदर कुमार का जन्म हुआ। उसके जन्म से नारकी जीवों को भी क्षण भर के लिए सुख हुआ। छप्पनदिक्कुमारी एवं इंद्रादि देवों ने आकर प्रभु का जन्म कल्याणक किया। अचिरादेवी की निद्रा भंग हुई। सब तरफ आनंद की बधाईयाँ बंटने लगी। घर-घर में मंगलाचार होने लगे। उनका नाम शांतिकुमार रखा गया। धीरे-धीरे दूज के चंद्रमा के समान कुमार बढ़ने लगे। शैशवकाल की मनोहर 1. ये पांचवें चक्रवर्ती भी थे।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 127 :