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दिन अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्षकल्याणक मनाया।
प्रभु ने साढ़े सात हजार वर्ष कौमारावस्था में साढ़े सात हजार वर्ष राज्य कार्य में और १५ हजार वर्ष व्रत पालन में, इस तरह ३० हजार वर्ष की आयु पूर्ण की। उनके शरीर की ऊंचाई २० धनुष थी।
मल्लिनाथजी के निर्वाण जाने के बाद चौवन लाख वर्ष बीतने पर मुनिसुव्रत स्वामी मोक्ष में गये।
मुनिसुव्रत स्वामी के समय में महापद्म नाम का चक्रवर्ती हुआ। और इनके शासन काल में राम बलदेव, लक्ष्मण वासुदेव और रावण प्रतिवासुदेव हुए।
कृपण बना उदार
परदेश में समुद्र के किनारे पर एक बार एक धनी, पर कृपण व्यक्ति घुम रहा था। उसका शरीर अस्वस्थ था। औषधिं में रुपये खर्च करने पड़ते थे। उस की वह इच्छा नहीं थी। तभी किसी ने कहा 'एक हवा सौ दवा' उससे वह समुद्र किनारे पैदल घूमने आता था। उस समय एक अमेरिकन करोडपति व्यक्ति वहां से जा रहा था। उसने उसे वहां घूमते देख कुछ सोचकर उसके पास आया और एक कार्ड देकर, कहा कल इस स्थान पर आना तुझे नोकरी पर रख दूंगा। आपघात मत करना। अभी ये दश पौंड ले ले। वह कुछ बोले उसके पूर्व तो वह मोटर में बैठकर चला गया। उस समय उस कृपण की मनोदशा में पलटा आ गया। वह उदार बन गया। कर्म ने पलटा खाया और वह करोडपति कर्जदार बन गया ऐसे समाचार पढ़े। उस उदार बनें व्यक्ति ने वहां जाकर ७० लाख डॉलर का चेक दिया। उसको कर्ज मुक्त कर व्यापार में लगा दिया।
वीशमा जिनवर भावे पूजो, तिन लोक में देव न दूजो । निरजर कूट को आप शोभावे, अनशन कर शिवनगरे जावे ॥
: श्री मुनिसुव्रत चरित्र : 142 :