________________
विमलबोध आनंद पूर्वक उनके साथ गया। दोनों मित्र मिलकर बहुत खुश हुए। फिर भुवनभानु की कन्याओं के साथ अंपराजित की शादी हो गयी। कुछ दिन के बाद अपराजित वहां से रवाना हो गया।
दोनों मित्र आगे चले। और श्रीमंदिरपुर पहुंचे। वहां उन्होंने शहर में कोलाहल और उदासी देखी। पूछने से मालूम हुआ कि यहां के दयालु राजा को कोई छुरी मार गया है। उसका घाव प्राणहारी हो गया है। अनेक इलाज किये मगर अब तक कोई लाभ नहीं हुआ। अब जान पड़ता है राजा न बचेगा।
____ अपराजित को दया आयी। वह मित्र सहित राजमहल में पहुंचा। उसने सूर्यकांत की दी हुई औषधि घिसकर लगायी और राजा अच्छा हो गया। राजा ने उसका हाल जानकर अपनी कन्या रंभा उसके साथ ब्याह दी। ____ कुछ दिन के बाद अपराजित वहां से मित्र सहित रवाना हुआ और कुंडिनपुर पहुंचा। वहां स्वर्ण कमल पर बैठे देशना देते हुए एक मुनि को उसने देखा। उन्हें वंदना कर वह बैठा और धर्मोपदेश सुनने लगा। देशना समाप्त होने पर अपराजित ने पूछा – 'भगवन मैं भव्य हूं या अभव्य?' केवली ने जवाब दिया-'हे भद्र! तूं भव्य है। इसी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में बाईसवां तीर्थंकर होगा और तेरा मित्र मुख्य गणधर होगा।' यह सुनकर दोनों को आनंद हुआ।
____ जनानंद नाम के नगर में जितशत्रु नाम का राजा था। उसके धारिणी नाम की रानी थी। रत्नवती स्वर्ग से च्यवकर धारिणी के गर्भ से जन्मी। उसका नाम प्रीतिमती रखा गया। वह संब कलाओं में निपुण हुई। उसके आगे अच्छे-अच्छे कलाकार भी हार मानते थे। इसलिए उसके पिता जितशत्रु ने प्रीतिमती की इच्छा जानकर सब जगह यह प्रसिद्ध कर दिया कि जो पुरुष प्रीतिमती को जीतेगा उसीके साथ उसका ब्याह होगा। और अमुक समय में इसका स्वयंवर होगा। उसी में कलाओं की परीक्षा होगी।
स्वयंवर मंडप सजाया गया। अनेक राजा और राजकुमार वहां जमा हुए। प्रीतिमती ने उनसे प्रश्न किये; परंतु कोई जवाब न दे सका।
: श्री नेमिनाथ चरित्र : 154 :