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किसी को अभय देना ठीक नहीं है। कौन जाने यह पुरुष कुछ गुनाह करके आया हो।' ..
अपराजित बोला – 'क्षत्रिय शरण में आये हुए को अभय देते हैं। शरणागत के गुणदोष देखना क्षत्रियों का काम नहीं है। उनका काम है केवल शरण में आये हुए की रक्षा करना। ___ इतने ही में 'मारो! मारो!' पुकारते हुए कुछ सिपाही आये और बोले-'मुसाफिर! इसे छोड़ दो। यह लुटेरा है।' अपराजित बोला – 'यह मेरी शरण में आया है। मैं इसे नहीं छोड़ सकता।' तब हम इसे जबर्दस्ती पकड़कर ले जायेंगे।' कहकर एक सिपाही आगे बढ़ा। अपराजित ने, तलवार खींच ली और कहा – 'खबरदार! आगे बढ़ा तो प्राण जायेंगे।' सब सिपाही आगे आये और अपराजित पर आक्रमण करने लगे। अपराजित अपने को बचाता रहा। जब सिपाहियों ने देखा कि इसको हराना कठिन है तो वे भाग गये। कौशलेश के पास जाकर उन्होंने फरियाद की।
कौशलपति ने लुटेरे के रक्षक को पकड़ लाने या मार डालने के लिए फौज भेजी। अपराजित ने सैकड़ों सिपाहियों को यमधाम पहुंचाया। उसके बल को देखकर सेना भाग गयी। तब राजा खुद फौज के साथ आया। घुड़ सवारों और हाथीसवारों ने अपराजित को चारों तरफ से घेर लिया। अपराजित भी घोड़े पर सवार होकर अपना रणकौशल बताने लगा। अपराजित ने खांडा और भाला चलाते हुए अनेकों को धराशायी किया। कौशलपति एक हाथी पर बैठा हुआ था। अपराजित ने हाथी पर भाला चलाया। महावत मारा गया। हाथी घूम गया। दूसरा हाथी सामने आया। अपराजित छलांग मारकर उस हाथी पर जा चढ़ा और उसके सवार व महावत दोनों को मार डाला। राजा 'शाबाश! शाबाश!' पुकार उठा। वीर हमेशा वीरों की प्रशंसा करते हैं। चाहे वह शत्रु ही क्यों न हो। .
कौशलपति को उसके मंत्री ने कहा – 'महाराज! यह वीर तो अपने मित्र हरिनंदी का पुत्र है। अनजान में हम युद्ध कर रहे हैं। युद्ध रोकिए।'
राजा ने युद्ध रोक दिया और कुमार को अपने पास बुलाया। स्नेह के साथ उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा – 'तुम्हारी वीरता देखकर मैं
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 151 :