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आगे एक-एक कोठड़ी और बनवायी। प्रतिमा के पीछे की तरफ भी एक द्वार बनवाया, वह प्रतिमा से बिलकुल सटा हुआ था।
दूत कुंभराजा के पास मल्लिकुमारी को मांगने पहुंचे। कुंभ ने अपमान कर उन्हें निकाल दिया। उन छहों राजाओं ने सोचा, कुंभराजा ने हमारा अपमान किया है। इसलिए उसको इसका दंड देना ही चाहिए। उन्होंने परस्पर सलाहकर बदला लेने के लिए मिथिला नगरी पर चढ़ायी कर दी।
.. कुंभ राजा ने युद्ध की तैयारी की। मल्लिकुमारी ने कहा - 'पिताजी! आप व्यर्थ ही नरहत्या न करिए, न कराइए। राजाओं को मेरे पास मिलने को भेज दीजिए। मैं सबको ठीक कर दूंगी। . अभिमानी राजा ने संशक नेत्रों से अपनी कन्या की तरफ देखा। पुत्री की आंखों में वह पवित्र तेज था कि जिसे देखकर उसका संदेह मिट
गया।
राजा कुंभ ने छहों राजाओं को मल्लिकुमारी से मिलने का संदेशा भेजा। राजा लोग मिलने आये। दासियों ने छहों राजाओं को छहों छोटी • कोठड़ियों के अंदर प्रतिमावाले कमरे के दरवाजे के बाहर खड़ा कर दिया। किवाड़ सीखंचेवाले थे। इसलिए उन्हें प्रतिमा स्पष्ट दिख रही थी। राज लोग उस रूप को देखकर दंग रह गये। वे समझे यही मल्लिकुमारी है।
राजा कुछ बोलें इसके पहले ही मल्लिकुमारी ने उस प्रतिमा के सिर से ढक्कन हटा दिया। ढक्कन हटते ही बदबू सब तरफ फैल गयी। राजा अपनी नाक कपड़े से बंदकर लौटने लगे। तब मल्लिकुमारी बोली – 'हे राजाओ! इस मूर्ति में प्रतिदिन केवल एक-एक ग्रास डाला गया है। उसकी दुर्गंध को भी आप लोग यदि सहन नहीं कर सकते हैं तो मेरे शरीर की दुर्गंध को, जिसमें प्रति दिन न जाने कितने ग्रास डाले गये हैं और जो महादुर्गंध वाला हो गया है, आप कैसे सहन कर सकेंगे? ज्ञानी पुरुष इस शरीर में मोह नहीं करते। और आप लोगों ने तो तीसरे भव में मेरे साथ दीक्षा ली थी। आप उसे
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 137 :