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मित्रों को न जानने से तुम पदार्थों के उपभोग से वंचित रहे थे।'
____ वसंत, केसरा, कामपाल और मदिरा ने भी ये बातें सुनि। वे कुरुचंद्र से मिले। कुरुचंद्र उनको अपने घर ले गया और बड़ा आदर सत्कार किया।
केवलज्ञान से लगाकर निर्वाण के समय तक भगवान शांतिनाथ के परिवार में ३६ गणधर, बासठ हजार आत्म नैष्ठिक मुनि, इकसठ हजार छ: सौ साध्वियां, आठ सौ चौदह पूर्वधारी महात्मा, तीन हजार अवधिज्ञानी, चार हजार मनःपर्यवज्ञानी, चार हजार तीन सौ केवलज्ञानी, छः हजार वैक्रिय लब्धिवाले, दो हजार चार सौ वादलब्धिवाले, दो लाख नव्वे हजार श्रावक और तीन लाख तरानवे हजार श्राविकाएँ थीं।
भगवान ने अपना निर्वाण काल समीप जान समेतशिखर पर पदार्पण किया। यहां नौ सौ मुनियों के साथ अनशन किया एक मास के अंत में ज्येष्ठ मास की कृष्णा त्रयोदशी के दिन भरणी नक्षत्र में भगवानं शांतिनाथ उन मुनियों के साथ मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने निर्वाण-कल्याणक किया। भगवान ने पचीस हजार वर्ष कौमारावस्था में, पचीस हजार वर्ष युवराजावस्था में, पचीस हजार वर्ष राजपाट पर और पचीस हजार वर्ष दीक्षावस्था में, इस तरह एक लाख वर्ष की आयु भोगी। उनका शरीर चालीस धनुष ऊंचा था।
धर्मनाथजी के निर्वाण बाद पौन पल्योपम कम तीन सागरोपम बीते तब शांतिनाथ भगवान मोक्ष में गये। .
शांतिनाथ है शांति के दाता, जो-जो आकर गुण को गाता । अतिशीघ्र वो शिवपढ़ पाता, गुणगान में बन जो राता ॥
: श्री शांतिनाथ चरित्र : 130 :