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का साथ दिया। मूर्छित चक्री जब चैतन्य हुए तब उन्होंने भी पशुपक्षियों तक को रुला देनेवाला आक्रंद करना प्रारंभ किया।
____ जब सब का शोक रुदन से कुछ कम हुआ तब प्रभु का निर्वाण महोत्सव (निर्वाणकल्याणक) किया गया और प्रभु का भौतिक शरीर भी देखते ही देखते चिता में भस्मसात हो गया।
.. इस तरह एक महान आत्मा हमेशा के लिए संसार से मुक्त हो गये। अपने अंतिम भव. में संसार का महान उपकार कर गये और संसार को सुख का वास्तविक स्थान तथा उस स्थान पर पहुंचने का मार्ग दिखा गये। _ प्रभु की चौरासी लाख पूर्व की आयु इस प्रकार पूर्ण हुई। २० लाख पूर्व कुमारावस्था में, ६३ लाख पूर्व राज्य का पालन और सुख भोग में, १००० वर्ष छद्मस्थावस्था में १००० वर्ष कम एक लाखपूर्व केवली पर्याय में। उनका शरीर ५०० धनुष ऊंचा था। . ___ भगवान का धार्मिक परिवार इस प्रकार था - ८४ गणधर ८४ गण;'. ८४ हजार साधु, ३ लाख साध्वियां, ३०५००० श्रावक, ५५४००० श्राविकाएँ, ४७५० चौदह पूर्वधारी श्रुत केवली; ६ हजार.अवधिज्ञानी, २०००० केवलज्ञानी २०६०० वैक्रिय लब्धिवाले, १२६५० ऋजुमति मनःपर्यवज्ञानी और १२६५० वादी थे। २०००० साधु और चालीस हजार साध्वियाँ मोक्ष में गयी। २२६०० साधु अनुत्तर विमान में गये।
धरम 'भेद' अभेद सुभाषकं, सुववहार के निश्चय भेदकम् । सकल पाप कुकर्म निकंदकं, ऋषभ वंदन वारक फंदकम् ॥
आदिनाथ है प्रथम यतीश्वर, करम खपावे अष्टापद पर । इगशतअड मुनि शिव पद संगे, वंदन करिए अतीव उमंगे ।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 41 :