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वीस बरस विहार करके प्रभु वापिस सहसाम्र वन में - जहां दीक्षा ली थी – वहां आये। वहां प्रियंगु (मालकांगनीका झाड) के नीचे छ? तप करके काउसग्ग में रहे। घाति कर्मों का नाश होने से चैत्र सुदि ११ के दिन मघा नक्षत्र में उन्हें केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ। इंद्रादि देवों ने ज्ञानकल्याणक उत्सव किया।
उनके शासन में तुंबुर नाम का यक्ष और महाकाली नाम की शासन देवी हुए। उनके संघ में १०० गणधर ३ लाख २० हजार साधु, ५ लाख ३० हजार साध्वियां, २ हजार ४ सौ चौदह पूर्व धारी, ११ हजार अवधिज्ञानी, १० हजार साढ़े चार सौ मनः पर्यवज्ञानी, १३ हजार केवली, १८ हजार चार सौ वैक्रिय लब्धिवाले, १० हजार चार सौ वादलब्धिवाले, २ लाख ८१ हजार श्रावक और ५ लाख १६ हजार श्राविकाएँ इतना परिवार था। ....
मोक्षकाल निकट जान प्रभु सम्मेत शिखर पर गये। वहां एक हजार . मुनियों के साथ मासखमण कर रहे और चैत्र सुदि ६ के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्षकल्याण किया। . - दस लाख पूर्व कौमारावस्था में, उन्तीस लाख बारह पूर्वांग राज्यावस्था में और बारह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व चारित्रावस्था में इस तरह ४० लाख पूर्व की आयु पूर्ण कर सुमतिनाथ प्रभु मोक्ष गये। उनका शरीर तीन सौ धनुष ऊंचा था।
श्री सुमतिनाथ भगवंत ने दीक्षा के दिन एकाशना करके दीक्षा ली थी।
अभिनंदन प्रभु के निर्वाण के बाद ६ लाख करोड़ सागरोपम बीते तब सुमति नाथ प्रभु का निर्वाण हुआ।
सुमतिनाथ है मुमति दाता, जो शरण ग्रहे उनके त्राता । एकाशन करके दीक्षा धारें, अनशन करके मोक्ष पधारें ॥
: श्री सुमतिनाथ चरित्र : 72 :