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योगों का निरोध कर भाद्रपद वदि ७ के दिन श्रवण नक्षत्र में उक्त मुनियों के साथ वे मोक्ष गये। इंद्रादि देवों ने मोक्षकल्याणक किया।
चंद्रप्रभु का कुल आयु प्रमाण १० लाख पूर्व का था। उसमें से उन्होंने ढाई लाख पूर्व युवराज पद में बिताये, २४ पूर्वांग सहित साढ़े छः लाख पूर्व पर्यंत राज्य किया और २४ पूर्वांग न्यून एक लाख पूर्व तक वे साधु रहे। उनका शरीर १५० धनुष ऊंचा था।
सुपार्श्व स्वामी के मोक्ष गये पीछे नौ सौ कोटि सागरोपम बीतने पर चंद्रप्रभुजी मोक्ष में गये।
क्रोध का विपाक . एक नगर में एक व्यापारी उघराणी के लिए गया था। कई दिनों से ग्राहक रुपये नहीं दे रहा था। वादे पर वादे कर रहा था। आज घर से निकला तब सोचकर निकला था कि आज तो रुपये लेकर ही आऊंगा। यह नहीं सोचा कि उसके घर में होंगे तो मिलेंगे। उसके घर जाकर सेठ ने अधिक आग्रह किया रुपये देने के लिए। ग्राहक नम्र आवाज में कह रहा था। पर सेठ आज उग्र बन गये थे। किसी भी हालत में आज देने पडेंगे। लेकर जाऊंगा। रुपये न हो तो बच्चे बैरी को बेचकर भी रुपये ला। सेठ के इन शब्दों से ग्राहक अतीव क्रोधीत बना। कुछ सोचा, घर में गया। अपने शरीर पर घासलेट अधिक मात्रा में डालकर आग लगाकर बाहर आकर सेठ कुछ सोचे उसके पूर्व तो उसने उनको अपने बाथ में ले लिया। सेठ चिल्लाने लगे। जलते-जलते भी वह बोला अब मेरे बच्चे बैरी बेचकर रुपये ले जाना।
ग्राहक स्वयं भी जला सेठ को भी जलाया। क्रोध का विपाक ऐसा भी होता है।
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श्वेतवरण में चन्द्रप्रभ सोहे, हे की कांति जनमन मोठे । ललित कूट पर मुनिवर आवे, साधना करके कउम वपावे ॥
: श्री चंद्रप्रभ चरित्र : 80 :