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सम्मेत शिखर पर आये और देवताओं सहित प्रदक्षिणा देकर प्रभु की सेवा करने लगे। ..
जब पादोपगमन अनशन का एक मास पूर्ण हुआ तब प्रभु का निर्वाण हो गया। उस दिन चैत्र शुक्ल पंचमी का दिन था; चंद्रमा मृगशिर नक्षत्र में आया था। इंद्रादि देवों ने मिलकर प्रभु का निर्वाण-कल्याणक किया।
उनका शरीर ४५० धनुष ऊंचा था। प्रभु ने अठारह लाख पूर्व कौमारावस्था में, तरेपन लाख पूर्व चौरासी लाख वर्ष राज्य करने में, बारह वरस छद्मस्थावस्था में और चौरासी लाख बारह वर्ष कम एक लाख पूर्व केवल ज्ञानावस्था में बिताये थे। इस तरह बहत्तर लाख पूर्व वर्ष की आयु समाप्त कर भगवान अजितनाथ, ऋषभदेव प्रभु के निर्वाण के पचास लाख करोड़ सागरोपम वर्ष के बाद मोक्ष में गये।
.. तीन ___ एक जगह तीन चीजें पड़ी थी। मोम, सुई और बाल,
. नीचे लिंखा था. . .मोमबत्ती के नीचे लिखा था- 'मेरी तरह पीघलकर दूसरों को प्रकाश देते जाईए' तो आत्मा उन्नत्ति के शिखर सर कर सकेगा।
सुई के नीचे लिखा था- 'सुई की तरह अपने दोषों को खुल्ले करते रहो पर दूसरों के दोष रूपी छिद्रों को बंध करते करवाते रहो।' जिससे कर्म निर्जरा का लाभ मिलता रहेगा। - बालों के नीचे लिखा था- 'हमारे जैसे अपने आपको लचीले और मुलायम नम्र रखो, जिससे किसी से कलह हो ही नहीं और आत्मा अशुभ कर्म से बचा रहेगा।
: श्री तीर्थंकर चरित्र : 61 :