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ब्राह्मण यह चमत्कार देखकर विस्मित हुए। उस दिन से उन्होंने शुद्धभट का तिरस्कार करना छोड़ दिया।
शुद्धभट ने घर जाकर सुलक्षणा से यह बात कही। सुलक्षणा ने कहा-'आपने ऐसा क्यों किया? यह तो अच्छा हुआ कि दैवयोग से कोई व्यंतर देव वहां था जिसने बालक को बचा लिया। यदि न होता तो हमारी कितनी हानि होती ? हमारा बालक जाता और साथ ही मूर्ख लोग जैनधर्म की भी अवहेलना करते । सम्यक्त्व तो सत्य-मार्ग दिखानेवाला एक सिद्धांत है। यह कोई चमत्कार दिखाने की चीज नहीं है। अतः हे आर्यपुत्र! आगे से आप ऐसा कार्य न करें।'
फिर अपने पति को धर्म में दृढ़ बनाने के लिए सुलक्षणा. उसको लेकर यहां आयी। ब्राह्मण ने मुझसे प्रश्न किया और मैंने उत्तर दिया कि, यह प्रभाव सम्यक्त्व का ही है।
शुद्धभट ने सुलक्षणा सहित दीक्षा ली। अनुक्रम से दोनों केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये।
अजितनाथ स्वामी को केवलज्ञान हुआ तब से विहार करते थे और उपदेश देते थे। उनके सब मिलाकर पंचानवे गणधर थे, एक लाख मुनि थे, तीन लाख तीस हजार साध्वियां थीं, तीन हजार सात सौ वीश चौदह पूर्वधारी थे, बारह हजार पांचसो (पचास) मनःपर्यवज्ञानी थे, नौ हजार चार सौ अवधिज्ञानी थे, बारह हजार चार सौ वादी थे, बीस हजार चार सौ वैक्रियक लब्धिवाले थे, दो लाख अठानवे हजार श्रावक थे और पांच लाख पैंतालीस हजार श्राविकाएँ थीं।
दीक्षा लेने के बाद चौराशी लाख वर्ष कम एक लाख पूर्व समय हुआ तब, भगवान अपना निर्वाण निकट समझकर सम्मेत शिखर पर गये। जब उनकी बहत्तर लाख पूर्व वर्ष की आयु समाप्त हुई तब उन्होंने एक हजार साधुओं के साथ, पादोपगमन अनशन किया। उस समय एक साथ सभी इंद्र के आसन कांपे। वे अवधिज्ञान द्वारा प्रभु का निर्वाणं समय निकट जान : श्री अजितनाथ चरित्र : 60 :