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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका पंचम तीर्थंकर श्री सुमति जिनके स्तवन में कहा गया है
___ मतिप्रवेकः स्तवतोऽस्तु नाथ । हे नाथ ! आपकी स्तुति करनेवाले मुझ स्तोताकी मतिका उत्कर्ष हो । आठवें तीर्थकर श्री चन्द्रप्रभ जिनके स्तवनमें कहा गया है
पूयात् पवित्रो भगवान् मनो मे । पवित्र भगवान् श्री चन्द्रप्रभ जिन मेरे मनको पवित्र करें। पन्द्रहवें तीर्थंकर श्री धर्म जिनकी स्तुति करते समय उन्होंने कहा
श्रेयसे जिनवृष प्रसोद नः।। हे धर्म जिन ! आप हमारे कल्याणके लिए प्रसन्न होवें। अठारहवें तीर्थंकर श्री अर जिनके स्तवनमें कहा गया है
गुणकृशमपि किञ्चनोदितं मम भवताद् दुरितासनोदितम् । हे अर जिन ! आपके विषयमें जो अल्प गुणोंका कीर्तन किया गया है वह मेरे पापकर्मों के विनाशमें समर्थ हो । बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत जिनकी स्तुति करते समय उन्होंने कहा है
भवतु ममापि भवोपशान्तये । हे मुनिसुव्रत जिन ! आप मेरे संसारको शान्तिके लिए निमित्तभूत होवें । स्वयम्भूस्तोत्रका महत्त्व :
___सामान्यरूपसे स्वयम्भूस्तोत्र एक स्तोत्र ग्रन्थ है और इसमें वृषभादि महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति की गयी है । परन्तु जब हम स्वयम्भूस्तोत्र का परिशीलन करते हैं तब ज्ञात होता है कि तीथंकरों की स्तुतिके बहाने इसमें जैनागमका सार तथा तत्त्वज्ञान पूर्णरूपसे भरा हुआ है । स्वयम्भस्तोत्रके संस्कृत टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्रने इस स्तोत्रको महिमा बतलाते हुए ग्रन्थके अन्तमें लिखा है ।
यो निःशेषजिनोक्तधर्मविषयः श्रीगौतममाद्यैः कृतः।
सूक्तार्थैरमलः स्तवोऽयमसमः स्वल्पैः प्रसन्नैः पदैः । उन्होंने इस स्तोत्रको समस्त जैन सिद्धान्तको विषय करनेवाला बतलाया है । इस स्तोत्रके द्वारा जैनदर्शनके अनेकान्त, स्याद्वाद, प्रमाण, नय, अहिंसा, अपरिग्रह आदि अनेक मौलिक सिद्धान्तोंका स्पष्ट बोध कराया गया है । यह स्तवन अद्वितीय है। इसके समान और कोई दूसरा स्तवन देखनेमें नहीं आता है। इस स्तोत्रके पदोंके सूक्तार्थ, अमल, स्कल्प और प्रसन्न विशेषणोंके द्वारा इस स्तोत्रका महत्त्व
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