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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदोपिका विशेषार्थ--यहाँ प्रश्न यह है कि जिस प्रकार जीवादि समस्त पदार्थ अनेकान्तरूप हैं, क्या उसी प्रकार अनेकान्त भी अनेकान्तरूप है। इस प्रश्नका तात्पर्य यह है कि अनेकान्तको सर्वथा अनेकान्तरूप मानने पर अनेकान्तवादीको स्वमत हानिका प्रसंग प्राप्त होता है। क्योंकि अनेकान्तवादमें सर्वथा नियमका त्याग है । अर्थात् किसी भी वस्तु तत्त्वका प्रतिपादन करते समय सर्वथा शब्दका प्रयोग वर्जित है।
उक्त प्रश्नका समाधान यह है कि अनेकान्त भी सर्वथा अनेकान्तरूप नहीं है, किन्तु कथंचित् अनेकान्तरूप और कथंचित् एकान्तरूप है। वस्तु तत्त्वके प्रतिपादन करनेके या जाननेके दो साधन हैं-प्रमाण और नय । प्रमाण और नयों के द्वारा जीवादि पदार्थोंका अधिगम होता है । प्रमाण और नय दोनों सम्यग्ज्ञान हैं । प्रमाण सम्पूर्ण वस्तुको ग्रहण करता है और नय वस्तुके एक अंशको ग्रहण करता है। प्रमाण के द्वारा वस्तुके समस्त धर्मोंका एक साथ ग्रहण होता है और नयोंके द्वारा क्रमशः वस्तुके एक-एक धर्मका ग्रहण होता है। इसी कारण प्रमाणको सकलादेश और नयको विकलादेश कहा गया है । जब वस्तु तत्त्वका ग्रहण या प्रतिपादन प्रमाणके द्वारा किया जाता है तब वस्तुके समस्त धर्मोंका ग्रहण होनेके कारण प्रमाणकी अपेक्षासे अनेकान्त अनेकान्तरूप है । अर्थात् केवल जीवादि पदार्थ ही अनेकान्तरूप नहीं है, किन्तु अनेकान्त भी अनेकान्तरूप है। इसके विपरीत वही अनेकान्त कभी एकान्तरूप भी हो जाता है । जब वक्ता वस्तु के अनेक धर्मोमें से किसी विवक्षित नयकी दृष्टिसे किसी एक धर्मका प्रतिपादन करता है तब वही अनेकान्त एकान्तरूप हो जाता है। किन्तु अन्य धर्म सापेक्ष होनेके कारण वह सम्यक एकान्त है, मिथ्यकान्त नहीं। मिथ्यकान्त तो अन्य धर्मोंका निराकरण करके केवल एक धर्मको सिद्ध करता है ।
यहाँ यह दृष्टव्य है कि अनेकान्त जब एकान्तरूप होता है तब वह सर्वथा एकान्तरूप न होकर कथंचित् एकान्तरूप होता है। एकान्त दो प्रकारका है-- सम्यक् एकान्त और मिथ्या एकान्त । अन्य धर्म सापेक्ष होकर किसी एक धर्मका कथन या ज्ञान सम्यक् एकान्त है। और अन्य धर्मोंका निराकरण करके सर्वथा एक धर्मको ही स्वीकार करना मिथ्या एकान्त है। अनेकान्त जब एकान्तरूप होता है तब वह सम्यक् एकान्तरूप होता है, मिथ्या एकान्तरूप नहीं । इस प्रकार अनेकान्तमें भी अनेकान्तकी सिद्धि होती है । अनेकान्त कथंचित् अनेकान्त है और कथंचित् एकान्त है। वह प्रमाणकी अपेक्षासे अनेकान्त है और नयकी अपेक्षासे एकान्त है । अनेकान्तमें अनेकान्तात्मकत्व और एकान्तात्मकत्व दोनों धर्म पाये जाते हैं । अतः अनेकान्तको अनेकान्तरूप होनेमें कोई विरोध नहीं है।
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