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श्री नमि जिन स्तवन
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स्तुति करनेसे स्तोताके परिणाम निर्मल होते हैं और निर्मल परिणामोंसे पुण्यबन्ध होता है तथा पुण्यबन्धसे स्वर्गादि फल प्राप्त होता है।
इस प्रकार इस संसारमें स्तोताको सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्ष पथ सुलभ है, स्तोताके अधीन है। स्तोता मोक्ष मार्गपर चलनेमें स्वतन्त्र है । स्तोता चाहे तो जिनेन्द्र भगवान्की श्रद्धापूर्वक स्तुति करके सम्यग्दर्शनादिरूप मोक्ष मार्गको प्राप्त कर सकता है और परम्परया मोक्षको भी प्राप्त कर सकता है। जब ऐसी बात है तब ऐसा कौन विवेकी पुरुष है जो श्री नमि जिनको स्तुति न करे । अर्थात् जो भी विद्वान् या विवेकी पुरुष है वह श्री नमि जिनकी स्तुति अवश्य करेगा।
त्वया धीमन् ब्रह्मप्रणिधिमनसा जन्मनिगलं समलं निभिन्नं त्वमसि विदुषां मोक्षपदवी । त्वयि ज्ञानज्योतिविभवकिरणैर्भाति भगवन्नभूवन खद्योता इव शुचिरवावन्यमतयः ॥ २॥ सामान्यार्थ हे धीमन् नमि जिन ! शुद्ध आत्मस्वरूपमें एकाग्रचित्तवाले आपके द्वारा पुनर्जन्मके बन्धनको उसके मूल कारण सहित नष्ट कर दिया गया है। इसलिए आप विद्वज्जनोंके लिए मोक्षमार्ग अथवा मोक्ष स्थान हैं । हे भगवन् ! केवलज्ञानरूप ज्योतिको समर्थ किरणोंके द्वारा आपके प्रकाशित होनेपर अन्य एकान्तवादोजन उसो प्रकार हतप्रभ हो गये थे जिस प्रकार निर्मल सूर्यके सामने खद्योत ( जुगनू ) प्रभारहित हो जाते हैं।
विशेषार्थ-श्री नमि जिनने शुद्ध आत्मस्वरूपमें चित्तकी एकाग्रतारूप धर्म्यध्यान और शुक्लध्यानके द्वारा पुनर्जन्मके बन्धनको अथवा संसारके बन्धनको उसके मूल कारण सहित नष्ट कर दिया था। ज्ञानावरणादि अष्टकर्म संसारमें जीवके परिभ्रमणके कारण हैं । कारणका नाश हो जानेपर कार्य उत्पन्न नहीं होता है। जैसे दग्ध बीजसे अंकुर उत्पन्न नहीं होता है। इसी प्रकार ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मोंका नाश हो जानेपर पुनर्जन्मका बन्धन नष्ट हो जाता है और ऐसे जीवको संसारमें परिभ्रमण नहीं करना पड़ता है । यतः श्री नमि जिनने ध्यानके द्वारा पुनर्जन्मके बन्धनको नष्ट कर दिया है अतः वे भव्य जीवोंके लिए मोक्षमार्ग अथवा मोक्षस्थान हैं । तात्पर्य यह है कि श्री नमिजिनको शरणमें पहुँचकर भव्य जीव मोक्षमार्गपर चलकर मोक्षको प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि उनके लिए श्री नमि जिन मोक्षमार्गरूप अथवा मोक्षस्वरूप हैं ।
श्री नमि जिन निर्मल सूर्यके समान केवलज्ञानरूप किरणोंसे प्रकाशित हो रहे हैं। उनकी केवलज्ञानरूप किरणोंका प्रकाश सर्वत्र फैल रहा है। ऐसे श्री
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