Book Title: Swayambhustotra Tattvapradipika
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 177
________________ १५८ स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका साथ परिग्रह भी रहता ही है। ऐसी स्थितिमें इन आश्रमों में परम ब्रह्मस्वरूप अहिंसा कैसे संभव है। जैनधर्म की तो ऐसी मान्यता है कि जिस आश्रममें लेशमात्र भी आरंभ है वहाँ अहिंसा कभी भी नहीं हो सकती है । __ श्री नमि जिन परम कारुणिक थे। यही कारण है कि उन्होंने परम ब्रह्म स्वरूप अहिंसा की सिद्धिके लिए धन, धान्यादि बाह्य और राग-द्वेषादि आभ्यन्तर दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग कर दिया था। बाह्य परिग्रहका त्याग कर देनेपर भी आभ्यन्तर परिग्रहके त्याग बिना अहिंसा की पूर्णता नहीं होती है। अतः पूर्ण अहिंसा की प्राप्तिके लिए दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग आवश्यक है । श्री नमि जिनकी यह विशेषता है कि उन्होंने पूर्ण अहिंसा की सिद्धिके लिए दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग कर दिया था। जो अन्य लोग विकृत वेष और परिग्रहमें आसक्त हैं वे दोनों प्रकारके परिग्रहके त्याग करनेमें सर्वथा असमर्थ हैं । जो लोग जटाजूट, मयूरपिच्छ, भस्माच्छादन आदि विकृत वेष धारण करते हैं तथा वस्त्र, आभूषण, अक्षमाला, मृगचर्म, दण्ड, त्रिशल आदि परिग्रह रखते हैं वे लोग बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रहका त्याग नहीं कर सकते हैं। और ऐसे लोगों द्वारा अहिंसारूप परम ब्रह्म की सिद्धि कभी भी नहीं हो सकती है। इस श्लोकके चतुर्थ चरणमें 'भवान्' के साथ 'एव' शब्दका प्रयोग यह बतलाता है कि श्री नमि जिनने ही दोनों प्रकारके परिग्रहका त्याग किया था, अन्य किसीने नहीं । अर्थात् जो व्यक्ति विकृतवेषोपधिरत है वह परिग्रहका त्याग नहीं कर सकता है । और इस कारण वह परम ब्रह्म की सिद्धि भी नहीं कर सकता है । वपुर्भूषावेषव्यवधिरहितं शान्तकरणं यतस्ते संचष्टे स्मरशरविषातङ्कविजयम् । विना भीमः शस्त्रैरदयहृदयामर्षविलयं ततस्त्वं निर्मोहः शरणमसि नः शान्तिनिलयः ॥५॥ (१२०) सामान्यार्थ हे नमि जिन ! आभूषण, वेष और वस्त्रादिके आवरणसे रहित तथा इन्द्रियोंकी शान्ततासे युक्त आपका नग्न दिगम्बर शरीर यह बतलाता है कि आपने कामदेवके बाणरूप विषसे उत्पन्न आतंक ( व्याधि ) को जीत लिया है और भयंकर शस्त्रोंके बिना ही निर्दय हृदय क्रोधका विनाश किया है । इस कारण आप निर्मोह तथा शान्तिके स्थान हैं । अतः आप हमारे शरणभूत हैं । विशेषार्थ-यहां यह बतलाया गया है कि श्री नमि जिनका शरीर वीतरागताको प्रकट कर रहा है । श्री नमि जिनका शरीर कटक, कुण्डल, कटिसूत्र • आदि अलंकारोंसे रहित है, जटाजट, भस्माच्छादन आदि नाना प्रकारके वेषोंसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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