Book Title: Swayambhustotra Tattvapradipika
Author(s): Udaychandra Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 193
________________ १७४ स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका स्याद्वाद यह संयुक्त पद है । शब्द पर्यायवाची नहीं हैं, किन्तु अनेकान्तवाद और स्याद्वादको पर्यायवाची कह सकते हैं । अनेकान्त वाच्य है और स्याद्वाद वाचक । स्यात् और वाद इन दो शब्दों के मिलनेसे स्याद्वाद पद बनता है । स्यात्का अर्थ है - कथंचित् और वादका अर्थ है— कथन । किसी अपेक्षा विशेष से किसी धर्म - का कथन करना स्याद्वाद कहलाता है । स्याद्वादमें जो स्यात् शब्द है उसका ठीक-ठीक अर्थ समझना आवश्यक है । उसको ठीक तरहसे न समझने के कारण अनेक लोग स्याद्वादका सही अर्थ समझ ही नहीं पाते हैं । कोई स्यात्का अर्थ संशय करते हैं तो कोई संभावना । कोई स्यात्का अर्थ कदाचित् करते हैं तो कोई स्यात् शब्दको विधिलिङ्लकार में निष्पन्न मानते हैं । स्यात् शब्दका अर्थ शायद करके कोई स्याद्वादको सन्देहवाद कहते हैं और कोई उसको संभावनावाद कहते हैं । ऐसे लोगोंको यह जान लेना आवश्यक है कि स्यात् शब्द तिङन्त नहीं है । वह एक निपात संज्ञक अव्यय है । वह सन्देहका वाचक न होकर एक निश्चित अपेक्षाका वाचक है । जैन शास्त्रोंमें स्यात् शब्दका विवेचन इस प्रकार किया गया है— वाक्येष्वनेकान्तद्योती गम्यं प्रति विशेषणम् । स्यान्निपातोऽर्थ योगित्वात्तव केवलिनामपि ॥ स्याद्वादः सर्वथैकान्तत्यागात् किंवृत्तचिद्विधिः । - आप्तमीमांसा - १०३ अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वादः । सर्वथात्वनिषेधकोऽनेकान्तताद्योतकः कथंचिदर्थे स्यात् शब्दो निपातः । - आप्तमीमांसा - १४ — लघीयस्त्रयटीका । Jain Education International - पञ्चास्तिकाय टीका । स्यादित्यव्ययमते कान्तताद्योतकं ततः स्याद्वाद अनेकान्तवाद इति यावत् । - स्याद्वादमंजरी | स्यात् शब्दके विषय में पहली बात यह हैं कि वह निपातसंज्ञक अव्यय है । अव्यय शब्द सदा एक-सा रहता है, वह कभी बदलता नहीं है और न उसके कभी रूप चलते हैं । दूसरी बात यह है कि वह एकान्तका निराकरण करके अनेकान्तका प्रतिपादन करता है । स्यात् शब्द कथंचित् शब्दका पर्यायवाची है । वह एक निश्चित अपेक्षाको बतलाता है । उसका अर्थ अनिश्चय या संशय नहीं है । जो लोग स्यात् शब्दको संशय परक मानते हैं उन्हें यह बात ध्यान में रखना चाहिए “ कि स्यात् शब्दका प्रयोग करते समय उसके साथ एव शब्द भी लगा रहता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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