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( २२ ) श्री नेमि जिन स्तवन
भगवानृषिः
परमयोग दहन हुतकल्मषेन्धनः ।
ज्ञानविपुलकिरणैः सकलं प्रतिबुध्य कमलायतेक्षणः ॥ १ ॥
हरिवंशकेतुरनवद्य
विनयदमतीर्थनायकः ।
शीलजलधिरभवो विभव
स्त्वमरिष्टनेमिजिनकुञ्जरोऽजरः ॥ २ ॥
सामान्यार्थ - जो भगवान् हैं, ऋषि हैं, जिन्होंने परम योगरूप अग्निमें कर्मरूप ईंधनको भस्म किया है, जिनके नेत्र खिले हुए कमल के समान विशाल हैं, जो हरिवंशके केतु हैं, जो निर्दोष विनय और दमरूप तीर्थके नायक हैं, जो शील समुद्र हैं और जो जरासे रहित हैं, ऐसे आप अरिष्टनेमि जिनेन्द्र ज्ञानरूप विपुल किरणोंके द्वारा समस्त लोकालोकको प्रकाशित करके संसारसे मुक्त हुए हैं ।
विशेषार्थ - यहाँ श्री नेमि जिन की शारीरिक, कुल सम्बन्धी तथा आध्यात्मिक विशेषताओंका वर्णन किया गया है । शारीरिक विशेषताका वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि वे विकसित कमल दलके समान विशाल नेत्रोंके धारक थे और उनका शरीर जरासे रहित था । इसका कारण यह है कि तीर्थंकरका शरीर वार्द्धक्य जन्य विकारसे रहित होता है । उनकी कुल सम्बन्धी विशेषताका वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि उनके वंशका नाम हरिवंश था और वे हरिवंशके केतु ( ध्वजा ) थे । अर्थात् हरिवंशमें प्रधान थे । हरिवंश केतुका दूसरा अर्थ यह भी होता है कि वे हरि ( कृष्ण नारायण ) के वंश के शिरोमणि थे । नेमिनाथ भगवान् का जन्म कृष्णके समय में हुआ था तथा वे कृष्ण के चचेरे भाई थे ।
श्री नेमि जिनकी आध्यात्मिक विशेषताओंका वर्णन करते हुए बतलाया गया है कि उत्कृष्ट शुक्ल ध्यानरूप अग्निमें कर्मरूप ईंधनको जलाकर वे कर्म कलंक से रहित हो गये थे । वे भगवान् — विशिष्ट ज्ञानवान् थे अथवा इन्द्रादि तथा गणधरादि द्वारा पूज्य थे । ऋषि - अनेक ऋद्धियोंसे सम्पन्न थे और जिनकुञ्जर
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