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(२१) श्री नमि जिन स्तवन स्तुतिः स्तोतुः साधोः कुशलपरिणामाय स तदा भवेन्मा वा स्तुत्यः फलमपि ततस्तस्य च सतः। किमेवं स्वाधीन्याज्जगति सुलभे श्रायसपथे
स्तुयान्न त्वा विद्वान् सततमभिपूज्यं नमिजिनम् ॥ १ ॥ सामान्यार्थ-जिनेन्द्र भगवान्की स्तुति स्तोता भव्य पुरुषके पुण्य साधक शुभ परिणामके लिए होती है। चाहे उस समय स्तुत्य (आराध्य देव) विद्यमान हो या न हो, और चाहे स्तुति करने वाले भव्य पुरुषको स्तुत्यके द्वारा फलकी प्राप्ति होती हो या न होती हो । इस प्रकार जगत्में स्वाधीनतासे कल्याण मार्गके सुलभ होनेपर ऐसा कौन विवेकी पुरुष है जो सर्वदा पूजनीय श्री नमि जिनकी स्तुति न करे।
विशेषार्थ-यहाँ श्री नमि जिनकी स्तुतिका प्रयोजन या फल बतलाया गया है । यहां विचारणीय यह है कि कोई स्तोता जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति क्यों करता है और स्तुति करनेसे उसे क्या फल मिलता है । इसका उत्तर यह है कि विवेकके साथ भक्तिपूर्वक स्तुति करनेवाले भव्य पुरुषको जिनेन्द्रदेवकी स्तुति करनेसे पुण्यसाधक प्रशस्त परिणामोंकी प्राप्ति होती है । अर्थात् स्तुतिके द्वारा परिणाम निर्मल होते हैं और निर्मल परिणामों द्वारा पुण्यबन्ध होता है। तथा पुण्यबन्धसे स्वर्गादिकी प्राप्तिरूप फल मिलता है। ऐसा नहीं है कि स्तुतिके कालमें अथवा स्तुतिके क्षेत्रमें स्तुत्य विद्यमान हो तभी स्तोताको स्तुतिका फल मिले । स्तुत्य साक्षात् रूपमें अथवा मूतिके रूपमें विद्यमान न भी हो तो भी स्तोताको स्तुतिका फल अवश्य मिलता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब स्तुतिके समय श्री नमि जिन समवशरणमें साक्षात् विद्यमान रहते हैं तब उनकी स्तुतिका फल स्तोताको मिलता ही है। वर्तमान कालमें श्री नमि जिन नहीं हैं, फिर भी उनकी मूर्तिके अवलम्बनसे श्री नमि जिनकी स्तुति करनेवालेको भी स्तुतिका फल अवश्य मिलता हैं । तथा श्री नमि जिनकी मूर्तिके न रहनेपर परोक्षरूपमें स्तुति करनेवालेको भी स्तुतिका फल मिलता है । स्तोता इस बातकी भी चिन्ता नहीं करता है कि स्तुत्य उसे फल देता है या नहीं । यथार्थमें वीतराग होनेसे स्तुत्य स्तोताको स्तुतिका फल नहीं देता है । किन्तु स्तोता स्तुतिका फल स्वयं प्राप्त करता है । जिनेन्द्रदेवकी
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