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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका आचार्य समन्तभद्रने आप्तमीमांसामें उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यको दो उदाहरणों द्वारा अच्छी तरहसे समझाया है । एक स्वर्णका घट है । उसे तोड़कर मुकुट बना लिया । यहाँ घट पर्यायका नाश हुआ और मुकुट पर्यायकी उत्पत्ति हुई। किन्तु दोनों ही पर्यायोंमें स्वर्णका अस्तित्व बराबर बना रहता है । घट पर्यायका नाश होनेपर घटार्थीको शोक होता है और मुकूट पर्यायके उत्पन्न होनेपर मुकुटार्थीको हर्ष होता है, किन्तु सुवणार्थीको दोनों ही स्थितियोंमें माध्यस्थ्यभाव रहता है । जो सुवर्ण घटके रूपमें था वही मुकुटके रूपमें भी विद्यमान है । इसलिए उसे न शोक होता है और न हर्ष होता है। क्योंकि शोक, प्रमोद और माध्यस्थ्य ये तीनों सहेतुक होते हैं। घटा के शोकका कारण घटका नाश है, मुकुटा के हर्षका कारण मुकुटका उत्पाद है और सुवणार्थीके माध्यस्थ्यभावका कारण दोनों ही अवस्थाओंमें सुवर्णका बना रहना है । इसी बातको आप्तमीमांसा में निम्नप्रकार बतलाया गया है
घटमौलिसुवणार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयम् ।
शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ।। ५९ ।। अब दूसरा उदाहरण देखिए-जिसके दुग्ध लेनेका व्रत है वह दधि नहीं खाता है, जिसके दधि लेनेका व्रत है वह दुग्ध नहीं पीता है और जिसके गोरस न लेनेका व्रत है वह दुग्ध और दधि दोनोंको ही नहीं खाता है । इससे ज्ञात होता है कि प्रत्येक तत्त्व त्रयात्मक (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप) है । दुग्धरूपसे जिसका नाश हुआ है उसीका दधिरूपसे उत्पाद हआ है, किन्तु दोनों ही पर्यायोंमें गोरस विद्यमान रहता है। यही ध्रौव्य है। जो दधिरूप है वह दुग्धरूप नहीं है और जो दुग्धरूप है वह दधिरूप नहीं है। इसीलिए पयोव्रती दधि नहीं खाता है और दधिव्रती दुग्ध नहीं पीता है । किन्तु अगोरसवती दोनोंको ही नहीं लेता है । इससे सिद्ध होता है कि वस्तुतत्त्व त्रयात्मक है। इसी बातको आप्तमीमांसामें इस प्रकार बतलाया गया है--
पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोत्ति दधिव्रतः ।
अगोरसवतो नोभे तस्मात् तत्त्वं त्रयात्मकम् ।। ६० ।। संसारके जड़-चेतन, सूक्ष्म-स्थूल, मूर्त-अमूर्त सभी पदार्थों में प्रतिक्षण उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यको एक साथ जानना सर्वज्ञताके बिना सम्भव नहीं है । अतः समस्त पदार्थों में प्रतिक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यको बतलानेवाला श्री मुनिसुव्रत जिनका वचन यह सिद्ध करता है कि वे सर्वज्ञ हैं तथा वक्ताओंमें श्रेष्ठ हैं । वक्ताओंमें श्रेष्ठ वही होता है जो यथार्थ वक्ता है। जो पदार्थ जैसा है उसको वैसा ही
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