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श्री अर जिन स्तवन
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नित्य है, कथंचित् एक है और कथंचित् वक्तव्य है, तो उसका कथन विरोधी धर्म सापेक्ष होनेके कारण प्रमाणसंगत है और स्वपक्षका साधक है । इस प्रकार यहाँ यह बतलाया गया है कि सुनय कौन है और दुर्नय कौन है अथवा सम्यक् नय कौन है और मिथ्या नय कौन है ।
सर्वथानियमत्यागी यथादृष्टमपेक्षकः ।
स्याच्छब्दस्तावके न्याये नान्येषामात्मविद्विषाम् ॥ १७ ॥
सामान्यार्थ — सर्वथारूप नियमाका त्याग करनेवाला और प्रमाणसिद्ध वस्तुस्वरूपकी अपेक्षा रखने वाला 'स्यात्' शब्द आपके न्यायमें है । किन्तु वह स्वयं अपने वैरी अन्य एकान्तवादियों के न्याय (मत ) में नहीं है ।
विशेषार्थ - यहाँ स्यात् शब्दका महत्त्व बतलाया गता है । स्यात् शब्द सर्वथा नियमका त्यागो है । वस्तु सर्वथा सत् है, सर्वथा नित्य है, सर्वथा एक है और सर्वथा वक्तव्य है, इत्यादि प्रकारसे कथन करना सर्वथा नियम कहलाता है । स्यात् शब्दने सर्वथाके नियमको छोड़ दिया है । जहाँ स्यात् शब्दका प्रयोग होगा वहाँ सर्वथा नियम रह ही नहीं सकता है । क्योंकि स्यात् और सर्वथामें पारस्प रिक विरोध है । इसके अतिरिक्त स्यात् शब्द प्रत्यक्षादि प्रमाण प्रतिपन्न वस्तुस्वरूपकी की अपेक्षा रखता है । वस्तु स्यात् सत् है, स्यात् नित्य है, स्यात् एक है और स्यात् वक्तव्य है, इत्यादि प्रकारसे वस्तुका जो स्वरूप प्रमाणसिद्ध है उस स्वरूपकी अपेक्षासे वह वस्तुका प्रतिपादन करता है । अर्थात् जो वस्तु जैसी देखी गई है उसका उसी रूपमें प्रतिपादन करता है ।
ऐसा स्यात् शब्द श्री अर जिनके न्याय ( अनेकान्तदर्शन ) में है और आत्मवैरी एकान्तवादियों के न्याय ( एकान्तदर्शन ) में नहीं है । स्यात् शब्दका प्रयोग अनेकान्तवादी ही करता है, एकान्तवादी नहीं । यदि एकान्तवादी स्यात् शब्दका प्रयोग करने लगे तो उसका वाद एकान्तवाद न होकर अनेकान्तवाद हो जायेगा । जो एकान्तवादी हैं वे परवैरी तो हैं ही, साथ ही स्ववैरी भी हैं । एकान्तवादी यथार्थ वस्तुतत्त्वको न जाननेके कारण अनेकान्तवादीका विरोध करते हैं । इसलिए वे परवरी हैं । किन्तु अनेकान्तदृष्टि के अभाव में एकान्तवादी स्वपक्षकी सिद्धि भी नहीं कर सकते हैं । इसलिए वे स्त्रवैरी भी हैं ।
अनेकान्तोऽप्यनेकान्तः प्रमाणनयसाधनः ।
अनेकान्तः प्रमाणात्ते तदेकान्तोऽपितान्नयात् ॥ १८ ॥ सामान्यार्थ - हे अर जिन ! आपके मतमें अनेकान्त भी प्रमाण और नयरूप साधनों की अपेक्षा से अनेकान्तरूप है । वह प्रमाणकी अपेक्षासे अनेकान्तरूप है और विवक्षित नयकी अपेक्षासे एकान्तरूप है ।
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