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स्वयम्भूस्तोत्र-तत्त्वप्रदीपिका जाता है । उनके स्वघाती होनेका कारण भी यह है कि वे बाल हैं, अज्ञानी हैं तथा वस्तुके यथार्थ स्वरूपको नहीं जानते हैं ।
__इन एकान्तवादियोंमेंसे कुछ एकान्तवादी ऐसे हैं जो कहते हैं कि वचनोंके द्वारा वस्तुका कथन हो ही नहीं सकता है। अर्थात् वस्तु सर्वथा अवक्तव्य है, वचनोंके अगोचर है । यह अवक्तव्यकान्त भी अन्य एकान्तोंकी तरह मिथ्या है । यथार्थ स्थिति यह है कि वस्तु न तो सर्वथा वक्तव्य है ओर न सर्वथा अवक्तव्य है। वह तो कथचित् वक्तव्य है और कथंचित् अवक्तव्य है। यदि कोई वक्ता वस्तुके समस्त धर्मोका एक साथ कथन करना चाहता है तो ऐसा करना संभव नहीं है । अतः वस्तु अवक्तव्य है। किन्तु जब वही वक्ता स्याद्वाद न्यायका आश्रय लेकर क्रमशः वस्तुके एक-एक धर्मका प्रतिपादन करता है तो वही वस्तु वक्तव्य हो जाती है।
सदेकनित्यवक्तव्यास्तद्विपक्षाश्च ये नयाः । सर्वथेति प्रदुष्यन्ति पुष्यन्ति स्यादितीह ते ॥ १६ ॥ सामान्यार्थ-सत्, एक, नित्य, वक्तव्य और इनके विपक्षरूप असत्, अनेक, अनित्य और अवक्तव्य ये जो नय हैं वे यहाँ सर्वथारूपसे वस्तुतत्त्वको प्रदूषित करते हैं और कथंचितरूपसे वस्तुतत्त्वको पुष्ट करते हैं ।
विशेषार्थ-वक्ताके अभिप्रायको नय कहते हैं । जब कोई वक्ता कहता है कि वस्तु सर्वथा सत् है, सर्वथा असत् है सर्वथा एक है, सर्वथा अनेक है, सर्वथा नित्य है, सर्वथा अनित्य है, सर्वथा वक्तव्य है और सर्वथा अवक्तव्य है, तो यहाँ एकान्तका प्रतिपादन करनेवाले जो नय पक्ष हैं वे सब दूषित ( मिथ्या ) नय हैं क्योंकि ये नय अपने विरोधी धर्मका निषेध करने के कारण वस्तुतत्त्वको विकृत कर देते हैं । जो वक्ता कहता है कि वस्तु सर्वथा सत् है या सर्वथा नित्य है उसका कथन प्रमाण बाधित होनेके कारण असत्य है तथा स्वपक्षको सिद्ध करने में असमर्थ है । जब वस्तु सर्वथा सत् या नित्य नहीं है तब उसको सर्वथा सत् या सर्वथा नित्य बतलाने वाले सर्वथैकान्तवादमें वस्तुतत्त्व प्रदूषित हो ही जाता है ।
इसके विपरीत जब कोई वक्ता कहता है कि वस्तु स्यात् सत् है, स्यात् असत् है, स्यात् एक है, स्यात् अनेक है, स्यात् नित्य है, स्यात् अनित्य है, स्यात् वक्तव्य है और स्यात् अवक्तव्य है, तो यहाँ अनेकान्तका प्रतिपादन करनेवाले जो नय पक्ष हैं वे सब सम्यक् नय हैं। क्योंकि ये सब नय अपने विरोधी धर्म सापेक्ष होनेके कारण वस्तुतत्त्वको पुष्ट करते है। अर्थात् उसके पूर्ण स्वरूपका प्रतिपादन करते हैं । जब कोई वक्ता कहता है कि वस्तु कथंचित् सत् है, कथंचित
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