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स्वयम्भू स्तोत्र - तत्त्वप्रदीपिका
अधिकरण की अपेक्षासे किया गया है । अर्थात् वृक्षाधिकरणको अपेक्षा से पुष्प अस्तिरूप है और आकाशाधिकरणकी अपेक्षासे नास्तिरूप है ।
कुछ लोग सत्ताद्वैतवादी हैं । उनका कहना है कि वस्तु सर्वथा सत् है, वह कथंचित् भी असत् नहीं है । यहाँ विचारणीय यह है कि यदि सत्त्वको ही वस्तुका स्वरूप माना जाय तो घटादि पदार्थ स्वद्रव्यादिकी तरह परद्रव्यादिकी अपेक्षासे भी सत् हो जायेगा । अर्थात् जिस प्रकार घट घटरूपसे सत् है उसी प्रकार वह पटरूपसे भी सत् हो जायेगा । किन्तु प्रतीतिविरुद्ध होनेसे ऐसा मानना उचित नहीं है । अतः सत्ताद्वैतवादियोंका मत असंगत है ।
कुछ लोग शून्याद्वैतवादी हैं । उनका कहना है कि वस्तु सर्वथा असत् है, वह कथंचित् भी सत् नहीं है । यहाँ विचारणीय यह है कि यदि असत्त्वको ही वस्तुका स्वरूप माना जाय तो पदार्थ परद्रव्यादि की तरह स्वद्रव्यादि की अपेक्षासे भी असत् हो जायेगा । अर्थात् जिस प्रकार घट पटरूपसे असत् है उसी प्रकार घटरूपसे भी असत् हो जायेगा । किन्तु प्रतीतिविरुद्ध होनेसे ऐसा मानना उचित नहीं है | अतः शून्यताद्वैतवादियोंका मत भी असंगत है ।
इसी बातको स्पष्ट करनेके लिए कहा गया है कि यदि पदार्थमें अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अनेकत्व आदि धर्मोंका अभाव माना जायेगा तो ऐसा पदार्थ प्रमाण रहित हो जायेगा । अर्थात् उसका व्यवस्थापक कोई प्रमाण नहीं मिलेगा । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वस्तुमें अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्म पाये जाते हैं । वे दोनों परस्परमें अविनाभावी हैं । एकके बिना दूसरा हो ही नहीं सकता । अतः अस्तित्व- नास्तित्व स्वभावसे रहित वस्तुकी सिद्धि किसी प्रमाणसे नहीं हो सकती है ।
श्री सुमति जिनका मत अनेकान्तरूप है । इस मतसे भिन्न जो दूसरे मत हैं वे एकान्तरूप होने से स्ववचनबाधित हैं । कोई व्यक्ति कहता है कि मेरी माता बन्ध्या है | उसका यह कथन स्ववचनबाधित है । यदि वह अपनी माताका पुत्र है तो उसकी माता बन्ध्या कैसे हो सकती है । माता और बन्ध्या ये दोनों शब्द परस्परमें विरुद्ध हैं । यदि वह माता है तो बन्ध्या नहीं हो सकती और बन्ध्या है है तो माता नहीं हो सकती । इसी प्रकार सत्ताद्वैतवादियों के मत में यदि प्रमाण की सत्ता है तो द्वैतका प्रसंग आनेसे सत्ताद्वैतवाद स्वतः निरस्त हो जाता है । इसी तरह शून्याद्वैतवादियों के मत में भी यदि प्रमाण की सत्ता है तो प्रमाणके सद्भावसे द्वैतका प्रसंग प्राप्त होता है । और द्वैतका प्रसंग आनेसे शून्याद्वैतवाद स्वतः निरस्त जाता है ।
इसी प्रकार जो व्यक्ति कहता है कि वस्तु न सत् है, न असत् है, न एक है,
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