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(१०) श्री शीतल जिन स्तवन
न शीतलाश्चन्दनचन्द्ररश्मयो
न गाङ्गमम्भो न च हारयष्टयः । यथा मुनेस्तेऽनघवाक्यरश्मयः
शमाम्बुगर्भाः शिशिरा विपश्चिताम् ॥१॥ सामान्यार्थ-हे शीतल जिन ! प्रत्यक्षज्ञानी आपकी प्रशम जलसे भरी हुई निर्दोष वचन रूप किरणे विद्वानोंके लिए जिस प्रकार शीतल हैं उस प्रकार न तो चन्दन और चन्द्रमा की किरणें शीतल हैं, न गंगाका जल शीतल है और न मोतियोंकी मालायें शीतल है ।
विशेषार्थ-दशम तीर्थंकरका नाम शीतलनाथ है । शीतलनाथ भगवान् संसारके तापसे संतप्त प्राणियोंके लिए शीतलता प्रदान करते हैं। श्री शीतल जिन प्रत्यक्षज्ञानी मुनि और वीतराग हैं। सर्वज्ञ होनेसे उनके वचन जीवादि तत्त्वोंके यथार्थ स्वरूपको प्रकाशित करते हैं और वीतराग होनेसे उनके वचनोंके द्वारा राग-द्वेषको दूर करनेका ज्ञान प्राप्त होता है। इसीलिए कहा गया है कि श्री शीतल जिनकी वचनरूप किरणें यथार्थ वस्तु स्वरूपको प्रकाशित करनेके कारण निर्दोष हैं, प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे अबाधित हैं और निर्मल हैं। वे वचन रूप किरणे प्रशम जलसे परिपूर्ण हैं। राग और द्वेषके अभावको शम या प्रशम कहते हैं । राग और द्वेषके अभावके कारण उनकी वचनरूप किरणोंमें प्रशम रूप जल भरा हआ है। इसी कारण श्री शीतल जिनकी वचनरूप किरणें हेय और उपादेय तत्त्वोंको जाननेवाले विद्वानोंके लिए शीतल हैं। क्योंकि वे वचन रूप किरणें संसारके संतापको दूर करके उन्हें शीतलता प्रदान करती हैं। तात्पर्य यह है कि श्री शोतल जिनके निर्दोष वचनोंको सुनकर भव्य जीवोंको यह ज्ञान हो जाता है कि इनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलकर संसारके संतापसे छुटकारा मिल सकता है और चिर शान्ति प्राप्त हो सकती है।
भगवान् शीतलनाथके वचनोंको सुनकर जैसी शीतलता प्राप्त होती है वैसी शीतलता चन्दनसे, चन्द्रमाकी किरणोंसे, गंगाके जलसे और मोतियोंकी मालाओंसे प्राप्त नहीं हो सकती है। लोकमें चन्दन आदिको शीतलता प्रदायक बतलाया गया है, किन्तु इनके द्वारा जो शीतलता प्राप्त होती है वह शारीरिक हैं तथा
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